By Mohd Shakeb ("Shauk-E-Shakeb")
उसकी ख़मोश निगाहें सवालों के तूफ़ान उठा देती हैं,
बिन बोले हरसू कोहराम मचा देती हैं।
बड़ी कश्मकश में रहता है दिल खुद की ग़लती तालाशने में,
एक वो है, कि निगाहें उठा कर आग लगा देती है।
तकल्लुफ़ करें जो माजरा-ए-ख़ामोशी पूछने में
तो वो ख़ामोश निगाहें सैलाब-ए-अश्क बहा देती हैं।
By Mohd Shakeb ("Shauk-E-Shakeb")
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