By ZafarAli Memon
कमाल है कमाल है
मज़हब की बात पर
क्यूँ उठ रहे सवाल है
बेहाल है बेहाल है
सब मकड़ियों के जाल है
दुनिया में रहना भी अब
बहुत बड़ा जंजाल है
बवाल है बवाल है
गुज़र रही जो ज़िंदगी
यह दिन है या कोई साल है
मुझे आज की फ़िक्र तो है
मुझे कल का भी ख़याल है
नक़ाब है नक़ाब है
हर चेहरे पर नक़ाब है
जो शख़्स की यह ज़ात है
वह साँप का भी बाप है
जो दो-रुख़ा किरदार है
ग़ज़ब है बे-मिसाल है
दलाल है दलाल है
सब सोच के दलाल है
गुनाह भी उसका माफ़ है
सब पैसे की यह चाल है
क्या काल है क्या काल है
ख़ुदा भी जो नाराज़ है
'इबादतों में मिल रहे
जल्दबाज़ी के आ'माल है
ख़ुद सोचना अब तो तू ज़रा
मज़हब की बात पर
क्यूँ उठ रहे सवाल है
कमाल है कमाल है
By ZafarAli Memon
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❤ Waah 👌
Your words are so lit ❤️🔥