खिड़की
- hashtagkalakar
- Jan 11
- 1 min read
Updated: Jan 18
By Chinmay Kakade
एक दिन खिड़की खुली रह गई थी तुमसे, तभी दीदार हो गया था तुम्हारा
बाल बनाते हुए दिखी तो थी पर चेहरा न देख पाया
हर रोज चाय के बहाने चाशनी देखने आना अब आदत सी हो गई थी
ना जाने कितने दिनों तक यही कहानी चलती रही
फिर एक दिन ऐसा आया कि एक पल के लिए ही सही, पर आंखों से आंखें
मिल गईं
तब से दिन का चैन और रातों की नींद ही उड़ गई
दिन गुज़र गए बस तकते-तकते, पर कभी मुलाक़ात न हो पाई
तुम तो चली गई, पर परदे का मुखड़ा पहने वो तुम्हारी खिड़की हमेशा खुली रही
सारे अफ़साने इस राही के अब उस खिड़की में कैद है
उसे इस बात की परवाह कहाँ, उसे तो बस एक और राही का इंतज़ार है
By Chinmay Kakade
So beautiful ❤️ ❤️
Khup chan
वास्तव की काल्पनिक? पण खूपच छान! 👌👌
क्या बात हैं मेरे पुराने दिन याद आ गये
Very nice