By Satya Deo Pathak
रंजिश मेरी ना रही किसी से,
खुद से ही नाराज़ रहता हूं।
बनती सबसे है मेरी,
खुद से बस अनबन रहती है।
किसी की शिकायत करता नहीं किसी से,
खुद को नहीं मैं बक्शता हूं।
खूबियां मेरी कितनी ही बताती दुनिया ये सारी,
कमियां लाखों हजारों खुद में मगर देखता हूं।
बुलाते हैं लोग, महफिलों में करता हूं शिरकत,
अपने लिए बस रहती नहीं फुर्सत।
किसी की दुनिया में उजाला हूं करता बनके मैं सूरज,
अंधेरों में खुद मगर मैं रहता हूं।
सब हैं यार मेरे, सब हैं साथ मेरे।
खुद से है कैसी ये दूरी?
कोई बुलाए भाग कर हूं जाता,
अपनी ही आवाज क्यूं सुन नहीं पाता हूं?
औरों की करता ख्वाइश पूरी,
खुद के अरमानों की करता ना चिंता।
देख के खुशियां औरों के चेहरे पर,
गम को अपने कोसो दूर मैं पाता हूं।
By Satya Deo Pathak
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