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खोज खुद ही की

By Dr. Anuradha Dambhare


ना जाने किस का एहसान ले के घुमते है हम आखिर,

कि गम की शिकायतें कितनी भी हो फिर भी खुश रहने का मुखवटा पहनना जैसे मजबुरी हो।


जो जुबान से ना बयान हो वो आँखों से है झलकता,

पर ईन एहसासों को दबाके खुलके मुस्कुराने का हुनर  बस यू ही नही पनपता।


वो दिल के सन्नाटों का शोर हो,

या फिर इन आँखों की उदासी..


वो अधुरेसे सपने हो,

या फ़िर अनकही फर्माइशे..


वो जो कभी ना पुरी होणे वाली जिद्द हो,

या फिर कोई समझौता..


इंसान कही ना कही से टूटता है और तब जाके खुदके लिये संभलता है,

क्योकि की खुदकी की कहानी खुदसे बेहत्तर कौन जानता है।


By Dr. Anuradha Dambhare


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