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ख्वाहिशें

By Shivam Mishra


कदम कदम पर अपनी ख्वाहिशों का गला दबाने वाले,

मुझको क्या जीना सिखाएँगे ये ज़माने वाले ।


खुदको बड़ा ताक़तवर महसूस करते हैं,

किसी और की मजबूरियों का फायदा उठाने वाले।


जबसे आईना देखा है, नज़र नीचे करके चलते हैं,

वो ज़माने भर को आँख दिखाने वाले ।




हर रोज़ श्मशान को रवाना होते हैं, वो कान्धे,

ख्वाबों का जनाजा उठाने वाले।


ये तो छाछ भी फूंक फूंककर पीते हैं,

इन्हें क्या ठाठ हम बताएँ मयख़ाने वाले ।


अक्सर अंधेरों में, अकेले रोया करते हैं,

ज़माने भर को बेतरतीब ये हंसाने वाले।


जबसे सच बोलने की बीमारी लगी है, अछूत हो गया है 'खालिस'

अब दूर ही रहते हैं, अक्सर मुझको गले लगाने वाले ।


By Shivam Mishra



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3 Comments

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Unknown member
Feb 03, 2023

कमाल कर दिया खालिस

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Shashwat Shukla
Shashwat Shukla
Jan 12, 2023

The rhyme scheme chosen for this piece is perfect.....it enhances the whip in the

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Unknown member
Jan 11, 2023

True

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