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ग़म का क़िस्सा है ये...

By Mohd Shakeb ("Shauk-E-Shakeb")


ग़म का क़िस्सा है ये, कि ये ख़ुशी की तालाश में रहता है,

जैसे एक बेरोज़गार रोज़ी की तालाश में रहता है।

मिल जाती है ख़ुशी जो इसको, ज़ाया कर,

फिर ख़ुद की तालाश में रहता है।

ग़म का क़िस्सा है ये, कि ये ख़ुशी की तालाश में रहता है।


मन के मानिंद है ये, हमेशा कश्मकश में रहता है,

मिलता नहीं आराम किसी भी दर पे इसको,

ये हमेशा दर-बदर रहता है।

ग़म का क़िस्सा है ये, कि ये ख़ुशी की तालाश में रहता है।



अमीरों की तिजोरी में रहता है, ग़रीबों की थाली में रहता है,

जिसकी जैसी ज़रूरत हो, ये उस ज़रूरत में रहता है,

ग़म का क़िस्सा है ये, कि ये ख़ुशी की तालाश में रहता है।


बचपन के नख़रों से जवानी की तालाश में रहता है,

जवानी से बुढापे की उलझनों में रहता है,

ज़िंदगी से क़ब्र तक ये साथ रहता है,

ग़म का क़िस्सा है ये, कि ये ख़ुशी की तालाश में रहता है।

By Mohd Shakeb ("Shauk-E-Shakeb")



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