By Bushra Benazir
क्या कहूँ ये हक़ीक़त है
औरत का असली घर
घर का ग़ुसलख़ाना है
ग़ुसलख़ाना का
हर वो कोना और दीवार
जिससे टेक लगाकर
औरत ने आंसू बहाये
अपनी हीच्कियों
अपनी सुबकियों को
नल के नीचे बहाये
दिमाग़ की नसें फटकर
चीथङे चीथङे हो जाती हैं
जब दर्द ग़ुस्लख़ाने में नहाये
आखों के दीदे लाल अंगारे हो जाते हैं बहते अश्क़ जब घुलघुल कर ग़ुस्लख़ाने की मोरी से बाहर हो जाते हैं ग़ुस्लख़ाने में रखे साबुन,शैम्पू,टिशु पेपर कोल-गेट,ब्रश,वाइपर औरत के दर्द के भागीदार सारे काश ये सारी चीज़ें बोल पाती बन पाती गवाह औरत के दर्द की तो शायद औरत अपना हर केस जीत पाती
By Bushra Benazir
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