By Kishor Ramchandra Danake
“पापा! आप जल्दी लौटोगे ना?”, मैरी ने अपने पापा से कहा। मैरी की आंखे अब आसुओं से भर गई थी।
“हा बेटा! मैं जल्दी लौटूंगा। फिर हम हमारे घर चलेंगे। मैं जबतक वापस नही लौटता यह सिस्टर तुम्हारे साथ रहेगी।“, मैरी के पिता ने मैरी को दिलासा देते हुए कहा।
मैरी के पिता यहां वहा देखते हुए और अपने कोट को अपने हाथोंसे सवारते हुए, मानो जैसे वह अपने आसुओंको अपने आंखोंसे निकलने ना देने की कोशिश कर रहे थे। अपनी लड़की जो बस दस साल की है, उसे अनाथ आश्रम छोड़ना पड रहा है इस बात का उन्हे बोहोत ही अफसोस हो रहा था। भले ही एक दिन के लिए क्यों न हो।
“यह जगह बोहोत अच्छी है मैरी बेटा। जबतक तुम्हारे पापा नही लौटते तबतक हम बोहोत खेलेंगे।“, पास खड़े सिस्टर ने मैरी के सिर पर हाथ रखकर प्यार से मुस्कुराते हुए कहा।
मैरी के पापा थोड़ा सा नीचे झुक गए और उन्होंने मैरी से कहा, “मेरी बेटी, मैं तुमसे बोहोत प्यार करता हूं और हमेशा करता रहूंगा।“ अब उनकी आंखों में आंसू मैरी को साफ दिखाई दे रहे थे।
“मैं भी आपसे बोहोत प्यार करती हूं, पापा।“, मैरी ने इतना कहते ही अपने पापा को जोर से गले लगाया।
“अच्छा! तो अब मैं चलता हूं।“, मैरी के पापा ने खड़े होकर मैरी से कहा।
आसुओं की धारा लगातार मैरी के गालोंपर से बह रही थी। लेकिन अपने गले में लटके लॉकेट को एक हाथ में पकड़कर मैरी उसी रास्ते की तरफ देखती खड़ी रही जहा से उसके पिताजी लौट गए थे। लॉकेट चांदी के रंग का दिख रहा था। लेकिन बोहोत ही पुराना!!!
मैरी खड़े खड़े उस लॉकेट के उपरसे अपनी उंगलियां फिराती रही, फिराती रही और बस फिराती रही।
“मैडम!”, एक आदमी ने आवाज दी जो अपने हाथ में गाड़ी की स्टीयरिंग पकड़े हुए गाड़ी चला रहा था।
“क्या हुआ?”, अपने गले में लटके पुराने चांदी जैसे लॉकेट के उपरसे उंगलियां फिराना थमाकर एक बूढ़ी औरत ने शांत स्वर में जवाब दिया।
उस बूढ़ी औरत ने अपने पतले से स्वेटर को सवारा जो उसने अपने गावून के ऊपर से पहना हुआ था। उसके छोटे छोटे काले सफेद बाल थे जो कान के बस थोड़े ही नीचे तक आते थे।
“मैडम, आप रो रहे हों? क्या कोई समस्या है?”, ड्राइवर ने कहा।
“नहीं! बस कुछ धुंधली सी यादें है मेरी उन्हें याद कर रही हूं। मेरे वजूद की तो अब मेरे पास बस मेरी यादें ही है। अब उनका ही सहारा है मुझे।“, मुस्कुराते हुए और थोड़ी सी निराशा के साथ मैडम ने जवाब दिया।
ड्राइवर ने भी थोड़ासा मुस्कुरा दिया लेकिन उसे वह निराशा महसूस हुई।
मैरी ने अपने हाथ में पकड़े कपड़े के थैले में देखा और फिर से उस थैले को बंद करके अपनी बाहोंमे पकड़ लिया।
“आपने आपका नाम क्या बताया था, मैडम?”, ड्राइवर ने पूछा।
“अरे सचिन, तुम मेरा नाम भूल भी गए???”, उस बूढ़ी औरत ने थोड़ा सा हंसते हुए कहा।
“वैसी बात नही है मैडम। वो थोड़ा अंग्रेजी नाम है ना इसलिए याद नहीं आ रहा है। देखो, आपका आखरी नाम ‘म्हात्रे’ तो मुझे याद है।“, सचिन ने हसी के साथ कहा।
मैडम ने भी उसकी बात पर थोड़ा सा हंस दिया और कहा, “मैरी! मैरी म्हात्रे।“
“अच्छा! अब थोड़ी देर दिमाग में दोहराते रहता हूं। ताकि याद हो जाये।“, सचिन ने कहा।
मैरी ने उसकी बात पर मुस्कुरा दिया।
“तो आप हमेशा के लिए अपनी बस्ती पर रहने जा रहे हो?”, सचिन ने पूछा।
“हां, अब रिटायर्ड हो गई ना तो इसलिए सोचा कि बाकी की जिंदगी वही गुजारू।“, मैरी ने कहा।
“तो आपकी वहा जमीन है?”, सचिन ने रुचि लेकर पूछा।
मैरी ने कहा, “अरे हां! मैं बताना भूल ही गई की मेरे वजूद की बस यादें ही नही बलकि मेरे पिता की कुछ जमीन और एक बंगला भी है। मरने से पहले मेरे लिए पीछे छोड़ गए थे।“
“तो अब आप वहा अकेले ही रहोगे?”, सचिन ने थोड़ी हैरानियत से पूछा।
मैरी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “हां! अब तो जिंदगी अकेले ही काटनी है। जबतक खुदको संभाल सकती हूं तबतक वही रहूंगी। अभी तो यही सोचा है मैंने।“
लेकिन उस मुस्कुराहट में फिर एक बार सचिन को निराशा साफ महसूस हुई।
सचिन ने गाड़ी का ब्रेक दबाया और गाड़ी को दूसरे गियर में डालते हुए कहा, “बोहोत खड्डे है रोड पर। यह कोपरगांव के रास्ते ना बोहोत ही खतरनाक है। पता ही नही रास्ते में खड्डे है या खड्डों में रास्ते।“ फिर तीसरा गियर डालते हुए सचिन ने गाड़ी तेज ली।
गाड़ी अब एक बड़े पुल पर से गुजर रही थी। वह पुल गोदावरी नदी के ऊपर था। नदी में जगह जगह पर पानी था और जगह जगह पर सुकी जमीन। कुछ लोग छोटी नाव में बैठकर जाले डाल रहे थे। नदी के उस पार और इस पार जमीन पर कुछ मिट्टी, ईंट के घर और झोपड़ियां भी थी।
मैरी खिड़की से बाहर नदी का दृश्य देख रही थी और फिर थोड़ी सी शांति के बाद मैरी ने पूछा, “सचिन तुम ये गाड़ी कब से चला रहे हों?”
सचिन ने जवाब दिया, “हम बोहोत पहले से ‘येवला’ के ‘जवळके’ नाम के गांव में रहते है। मेरा जनम भी वही हुआ था। आज ३५ साल से अपने परिवार के साथ, मैं वही रहता हूं। तो जब मैं छोटा था तब से हम जिन के बस्ती पर रहते थे ना तो उनके खेत में ट्रैक्टर पर जाते थे तो मैंने ट्रैक्टर सिख लिया और धीरे धीरे दूसरी गाड़ीया चलाना भी सिख लिया और क्या, बन गया मैं ड्राइवर। तो जब मैं थोड़ा सा बड़ा हुआ तो मैंने दुसरोंकी रिक्शा चलाने के लिए ले ली। सालो बाद मैंने खुदकी एक रिक्शा और ये छोटा हाथी लिया जिसमे हम बैठे है अभी।“ और हंसने लगा। मैरी भी उसके साथ हंसने लगी।
फिर से थोड़ी सी शांति छा गई।
फिर उस शांति के बाद सचिन ने पूछा, “तो मैडम आप पिछली बार कब गए थे गांव?”
मैरी ने लंबी सांस छोड़कर कहा, “जब मैं दस साल की थी तब मैने अपनी बस्ती छोड़ी थी। उसके बाद मैं कभी कभी वहा जाया करती थी। क्योंकि मेरे पिताजी और मां की कब्र भी वही है। बीच में मैंने थोड़ा सा हमारे बंगले का रेनोवेशन भी किया। बोहोत कुछ बदल चुका है तबसे लेकर अबतक। लेकिन बस्ती के पुराने लोग जो मेरे पिताजी के लिए काम करते थे वे अब भी वहापर है। वहापर एक परिवार है जिनके साथ मेरा अच्छा रिश्ता है। मैंने सबके साथ तो जादा जान पहचान नहीं की लेकिन अब जाऊंगी तो हो जायेगी। क्योंकि अब वो मेरे पड़ोसी ही है। है ना?”
“हां सही है। जान पहचान तो करनी ही पड़ेगी।“, सचिन ने कहा। “वैसे तुमने बस्ती क्यों छोड़ी थी मैडम?”
मैरी ने उसकी तरफ देखा और फिर से गाड़ी के बाहर। मानो जैसे वह अपना बिता कल याद कर रही हो।
उसने कहा, “मैं जब दस साल की थी तब उस बस्ती पर मेरी मां गुजर गई थी।“
यह सुनते ही सचिन को बुरा लगा।
मैरी ने अपनी बात आगे बढ़ाई, “लेकिन वह एक बुरा अपघात था। हमारे बंगले के पीछे लकड़ी के एक नुकीले टुकड़े पर मेरी मां गिर गई थी और वह टुकड़ा उनके पेट में घुस गया था।“
यह सुनते ही सचिन चौंक गया। हमदर्दी के साथ उसके रोंगटे भी खड़े हो गए। उसे ऐसे कुछ सुनने की कोई भी उम्मीद नहीं थी।
मैरी ने आगे कहा, “अच्छा हुआ की मैं स्कूल में थी वैसे भी मैं यह सब देख नही पाती।“ और उसने फिर एक बार लंबी सांस छोड़ी।
सचिन ने कहा, “यह तोs, यह तोs काफी बुरा हुआ मैडम।“
मैरी ने कहा, “उस हादसे के बाद से मेरे पिताजी बोहोत ही सदमे में रहने लगे। हमारा कोई रिश्तेदार नही था। कुछ थे लेकिन हमारा पहले से उनके साथ कोई संबंध नहीं था। शहर में एक अनाथ आश्रम था जो क्रिश्चियन मिशनरीज का था। जिनके साथ मेरे पिताजी और मां के अच्छे संबंध थे। क्योंकि मेरे पिताजी के साथ शादी से पहले मेरी मां भी उसी मिशनरीज का हिस्सा थी। क्योंकि वह भी एक अनाथ थी और उसे भी उन्होंने ही संभाला था। इसलिए एक दिन मेरे पिताजी ने मुझे उस अनाथ आश्रम में वहा के एक सिस्टर के पास छोड़ा और कहा कि उनका थोड़ा सा काम है और वह फिर से लौटेंगे और मुझे लेकर फिर से घर चलेंगे। लेकिन!!!” मैरी अचानक से रुक गई।
“लेs लेकिन क्या मैडम?”, सचिन ने पूछा। क्योंकि उसने अब अंदाजा लगा ही लिया था की कुछ बुरा ही हुआ होगा।
मैरी ने कहा, “अगले दिन खबर आती है की मेरे पिताजी ने हमारे बंगले में फांसी लगा ली।“ और फिर से लंबी सांस छोड़ी।
सचिन ने एकटक मैडम की तरफ देखा और फिर से रास्ते की तरफ। उसे क्या कहे कुछ भी समझ नही आ रहा था।
सांत्वना देते हुए सचिन ने कहा, “बचपन की उम्र में ही आपने बोहोत बुरे दिन देख लिए है मैडम। काफी मुश्किल हालातों से गुजरे हो आप।“
मैरी की आंखे फिर से थोड़ी सी नम हो गई थी।
“मेरे पिताजी ने जाने से पहले दस एकड़ की जमीन से दो- दो एकड़ जमीन वहा के चार परिवारोंको दी। जो हमारे बस्ती पर थे और मेरे दादाजी और फिर मेरे पिताजी के लिए खेती का काम, जानवरोंका काम और घर का काम करते थे। और दो एकड़ मेरे लिए छोड़ गए। बस्ती में एक कब्रस्तान भी बनाया है। उस जगह पर जहा मेरे दादाजी, दादी, पिताजी और मां को दफ्नायां गया था। वहापर तब से शहर के क्रिश्चियन लोगोंको भी दफनाते है।“, मैरी ने कहा।
“आपके पिताजी तो काफी अच्छे स्वभाव के थे। अपने नौकरों के बारे में कितना कुछ सोचते थे।“, सचिन ने हैरानियत के साथ कहा।
“हा बस बस अब यहां से दायनी ओर गाड़ी लेना है।“, मैरी ने अचानक से कहा।
इंडिकेटर देते हुए और अपना एक हाथ बाहर दिखाते हुए सचिन ने गाड़ी दूसरी तरफ ले ली और कच्चे रास्ते पर फिर से गाड़ी चलने लगी।
“अब कितने दूर?”, सचिन ने पूछा।
“अब बस थोड़े ही दूर फिर शुरू होगी हमारी बस्ती जिसे लोग म्हात्रे बस्ती से जानते है।“, मैरी ने कहा।
मैरी की बात खत्म होते ही दूर से उन्हें रास्ते के दांई और बांई ओर कुछ घर दिखने लगे।
सचिन ने कहा, “मैडम एक बात कहता हूं। बुरा मत मानना।“
मैरी ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे नही सचिन बोलो बोलो!!!”
“इस जगह से जुड़ी कितनी बुरी यादें है तुम्हारी। क्या तुम यहा अपनी पूरी जिंदगी सुकून से गुजार पाओगे?”, सचिन ने गंभीरता से कहा।
मानो उसे अब मैडम की बोहोत ही फिक्र होने लगी थी। जैसे मैडम कोई उसकी बोहोत ही करिबी हो।
“गाड़ी रोको।“, मैरी ने अचानक से कहा। मैरी की नजर रास्ते के दांई तरफ थी जहा एक कब्रिस्तान था।
“चलो मेरे साथ।“, मैरी ने कहा।
कब्रस्तान के चारो ओर २ फीट ऊंची सीमेंट की दीवार थी।उसके पास एक बड़ा सा नीम का पेड़ था। जिसके नीचे सीमेंट से बनी दो फीट ऊंची बैठने की जगह थी। जिसपर एक बूढ़ा आदमी जिसकी उम्र लगभग ८०-८५ के बीच होगी, छांव में अपने हाथ में लाठी लिए बैठा हुआ था।
मैरी उतर गई और हाथ में अपनी कपड़े की थैली लिए कब्रिस्तान की ओर चलने लगी। सचिन भी मैरी के पीछे पीछे चलने लगा।
उस बूढ़े आदमी की तरफ देखकर मैरी ने मुस्कुराकर कहा, “कैसे हो श्रावण चाचा?”
थके हुए और धीमी आवाज में उस बूढ़े आदमी ने कहा, “ठीक हूं बेटा। ऊपरवाले की दया से।“
“पिताजी और मां से मिलकर आती हूं।“, मैरी ने कहा।
फिर मैरी और सचिन कब्र की जगह पर आ गए। जहा पर बोहोत से क्रॉस यहां वहा लगे हुए थे। मैरी अपने पापा और मां के कब्र के पास गई। जो एक दूसरे से जुड़ी हुई थी। उसने अपने घुटनों को टिकाया और अपनी थैली से फूल निकालकर उनकी कब्र पर रखा। फिर उसने अपने हाथ जोड़कर और उंगलियां मोड़कर कुछ समय के लिए अपनी आंखे बंद की। सचिन मैडम के पीछे ही खड़ा था और बस देख रहा था।
मैरी धीरे से उठ गई। उसकी आंखे अब थोड़ी सी नम हो गई थी।
उसने सचिन से कहा, “भले ही इस जगह से मेरे जिंदगी की दुःखद बाते जुड़ी हो। लेकिन यह मेरा घर है। यहां मेरे पिताजी और मां का वजूद है। बाते कैसी भी हो अच्छी या बुरी लेकिन मेरे पिताजी और मेरी मां इस जगह की वजह से मेरी सोच से, मेरे अस्तित्व से और मेरी जिंदगी से हमेशा जुड़े रहेंगे। और मेरे इन आखरी दिनों में मैं बस उन्हें महसूस करना चाहती हूं।“, मैरी ने कहा।
सचिन मैरी की यह बाते सुनकर भावुक हो गया और उसने बस सहमति से अपना सर हिलाया।
मैरी फिर से उस बूढ़े आदमी के पास आई और कहा, “चाचा, मिलने आओ बंगले पर। अब मैं यही रहने आई हूं।“
यह बात सुनकर, श्रावण के चेहरे के भाव अचानक से बदल गए। वह थोड़ा सा चौंक गया।
उस बूढ़े आदमी ने थकी और धीमी आवाज में कहा, “हां!! मैं – मैं जरूर मिलने आऊंगा।“
सचिन और मैरी फिर से अपनी गाड़ी में बैठ गए और गाड़ी रास्ते पर बंगले की ओर बढ़ने लगी। लेकिन श्रावण गाड़ी की तरफ ही एकटक देखता रहा।
उसी रास्ते पर थोड़ी सी दूर ठीक दांई ओर एक बूढ़ा आदमी रास्ते के नीचे खड़ा था। जो दिखने में किसी भिकारी की तरह लग रहा था। जिसके सिर के और दाढ़ी के बाल एकदम सफेद, गंदे और उलझे हुए थे। गाड़ी अब बस्ती की ओर बढ़ रही थी। दांई ओर के घरों के दरवाजे पूर्व की तरफ तो बांई ओर के घरों के दरवाजे पश्चिम की तरफ थे। बीच में एक रास्ता था। सब के घरों के सामने दूर तक फैले हुए खेत थे।
अब उन्होंने दांई ओर एक पुराना लकड़ी का घर और बांई ओर दो एक दूसरे से जुड़े बंगले पीछे छोड़ दिए।
फिर अचानक से गाड़ी का जोर से ब्रेक लगा। मैरी सीट पर से आगे जाके एक झटके में फिर से अपनी पूर्व स्थिति में आ गई। वह बूढ़ा आदमी जो किसी भिकारी की तरह लग रहा था, अचानक से गाड़ी के सामने आकर खड़ा था। सचिन ने हॉर्न बजाया और हॉर्न बजाने पर भी वह हटने का नाम ही नही ले रहा था। उसी वक्त दांई ओर के घर से दो औरते बाहर आई और देखने लगी। उनके साथ २ कुत्ते भी खड़े थे। बांई ओर के घर से भी एक वृद्ध महिला खिड़की से झांकने लगी।
“लगता है पागल है! कौन है मैडम यह आदमी?”, सचिन ने मैरी से पूछा।
“यह दगड़ू चाचा है। और पागल मत बोलो उन्हे। उन्हे कोई यहां पागल नही बुलाता। ऐसा कहते है की बोहोत बरसों से उनका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है।“, मैरी ने कहा।
“लेकिन उसका मतलब पागल ही हुआ ना?”, सचिन ने धीमी आवाज में कहा।
फिर वह बूढ़ा आदमी सचिन के दरवाजे के पास आया और डर से भरी आवाज में उसने कहा, “उस चुड़ैल ने मुझे श्राप दिया है की मैं पागल हो जाऊंगा!” और फिर अचानक से हंसते हुए कहने लगा, “लेकिन देखो क्या मैं पागल हुआ? नही ना!? नही ना!? हांss हांss”
सचिन ने थोड़ा सा डर गया। भद्दी सी मुस्कुराहट के साथ उसने कहा, “नहीं आप पागल नहीं हो। कौन बोला? मुझे तो आप एकदम ठीक लग रहे हो।“ फिर दगड़ू कब्रिस्तान की ओर चलने लगा और बस यही बड़बड़ाता रहा की, “उस चुड़ैल ने मुझे श्राप दिया की मैं पागल हो जाऊंगा....।“
“सुबह से क्या सिर्फ चाचा लोग ही मिल रहे है। वो भी थोड़े अजीब तरह के। लगता है बस्ती के सारे अपने अपने काम पर चले गए हैं। इसलिए इतनी शांति है।“, सचिन ने थकान भरी आवाज में गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा। और वह फिर से निकल पड़े। सचिन को सामने अब लकड़ी का एक बड़ा बंगला दिख रहा था।
अब गाड़ी एक एक करके घरोंको पार करने लगी। सारे घरों के आसपास बोहोत से बड़े बड़े पेड़ लगे थे। खेतों की सिमावों पर भी। हर तरफ छांव और हवा के झोंकों से एक दूसरे पर पड़ती शाखाओं की सरसराहट। दूर दूर तक कोई दूसरे घर नही। इस वजह से म्हात्रे बस्ती एक मनोरम स्थान लगता था। ऐसे समय बस्ती के सारे लोग अपने अपने काम पे चले जाते है। कोई खेतों में तो कोई शहर में काम करता है। छोटे बच्चे अपने अपने स्कूल में गए हुए थे। कुत्ते भी पेड़ों की छाव में सोए हुए थे। गाय और बकरियां भी छांव में बैठी हुई थी। यही कारण था की बस्ती में इस वक्त बोहोत ही शांति थी। अब सारे घरोंको पार करने के बाद गाड़ी एक बंगले के सामने आकर रुक गई। रास्ता बंगले के पास आके ही खत्म हो जाता था। बंगला पूरा लकड़ी का था। बंगले के दरवाजे के ठीक सामने आंगन में खेत की सीमा पर बोहोत से आम के पेड़ भी थे। और बंगले के हर तरफ नीम के, इमली के और अमरूद के बड़े पेड़ थे। बंगले का दरवाजा पूर्व की तरफ था।
मैरी गाड़ी से बाहर उतरते ही एक मोटे आदमीने मैरी की ओर चलकर आते हुए कहा, “मैडम आ गए आप??” उस आदमी के सिर के आधे बाल उड़ चुके थे। उसकी उम्र लगभग ३५ साल होगी।
“अरे विलास, आओ आओ।“, मैरी ने खुशी के साथ कहा।
“कैसे हो मैडम?”, विलास ने मुस्कुराते हुए कहा।
“अच्छी हूं।“, मैरी ने कहा।
“मैं वही सोच रहा था की कब आओगे आप?”, विलास ने कहा।
“अच्छा! अरे रोशनी आओ! आओ!”, मैरी ने खुशी के साथ अपनी ओर आते एक औरत से कहा। अब मैरी के चेहरे पर एक अलग ही खुशी थी। ऐसी खुशी जैसे हम अपने किसी प्रिय व्यक्ति से मिलते है।
सचिन गाड़ी के बाहर उतरकर बंगले को और आसपास के परिसर को निहार रहा था।
उसी वक्त मैरी ने सचिन से कहा, “यह है मेरा घर। देखो इसी आंगन में मैं खेला करती थी। मुझे आज भी याद है की उपरके कमरेकी उस खिड़की से मेरे पिताजी मेरी तरफ देखकर मुस्कुराते थे।“ सचिन को मैरी की यह बात सुनकर फिर एक बार निराशा महसूस हुई।
उसी वक्त विलास गाड़ी के ऊपर चढ़ गया और उसने कहा, “सामान ज्यादा नहीं हम उतार लेंगे जल्दी से।“
सचिन ने भी कहा, “हां, उतार लेते है सब मिलकर।“
बंगले के अंदर घुसते ही अंदर बड़ा सा हॉल था और दांई ओर एक कमरा था। उसी कमरे के दरवाजे के पास ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ियां थी। क्योंकि ऊपर दो कमरे और थे। बांई ओर किचन और किचन के पास एकदम कोने में बाथरूम था। बाथरूम तो बस कुछ महीने पहले ही मैरी ने यहां आने से पहले बनवाया था।
अब सचिन, मैरी , विलास और रोशनी सामान को अंदर ले गए।
मैरी के कहने पर उसके हिसाब से उन्होंने सारा सामान दांई ओर के कमरे में रखवा दिया। किचन होने के बावजूद भी उसने अपना गैस और बर्तन भी अपने ही कमरे में रखवा दिए। क्योंकि उसका जादा सामान नहीं था। उस कमरे में दो खिड़कियां थी। एक खिड़की से देखे तो आंगन दिखता था।दूसरी वहा थी जहां से बस्ती और रास्ता पूरा नजर आता था। जादा पेड़ होने के कारण कब्रस्तान की जगह कुछ खास दिखाई नहीं देती थी।
वह चारो अब आंगन में खड़े थे। सचिन ने मैडम से कहा, “अच्छा तो मैडम सामान सब रखवा दिया है। टॉयलेट के लिए बाथरूम कहा है?”
“अरे सचिन वो वहा किचन के पास एकदम कोने में।“, इशारा करते हुए मैरी ने कहा।
“अच्छा ठीक है। मैं अभी आता हूं।“, सचिन ने कहा और वह चला गया।
“और हां विलास! सोच रही हू की यह उपरका कमरा कम भाड़े पर किसी अच्छे परिवार को दे दू। लेकिन मुझे लगता नही की कोई यहां रहने आ सकता है।“, हंसते हुए मैरी ने अपनी बात कही। “लेकिन मैं चाहती हूं की उन्हे इस घर के बारे में सब पता होना चाहिए। यहां पर घटी हर एक बात। मैं किसी को धोखे में नही रखना चाहती।“
विलास ने कहा, “ठीक है मैडम मैं देखता हूं। चर्च में एक परिवार आता है। वह व्यक्ति यहां गांव के सरकारी स्कूल में एक अध्यापक है। वे एक किराए के मकान में रह रहे है। लेकिन उन्हें वह पसंद नही है। वे शहर में घर देखने की सोच रहे है। लेकिन मैं उन्हें पूछकर देखता हूं।“
“हां जरूर!”, मैरी ने सहमती दर्शाते हुए कहा।
उसी वक्त सचिन भी वहा आया। उसने कहा, “अच्छा तो अब मैं चलता हूं मैडम।“
“शुक्रिया! इसे रख लो।“, उसके हाथ में पैसे देते हुए मैरी ने कहा।
“शुक्रिया मैडम, कुछ मदद की जरूरत हो तो जरूर फोन करना। एक दिन मैं आपसे मिलने फिर से आऊंगा। पक्का!”, सचिन ने मुस्कुराकर कहा।
“हां! जरूर सचिन। तुम्हारा यहां हरवक्त स्वागत है।“, मैरी ने कहा।
मैरी सचिन की यह बात सुनकर खुश हो गई थी। फिर सचिन गाड़ी में बैठा और चला गया।
मैरी ने विलास और रोशनी की तरफ देखकर कहा, “शुक्रिया! तुम्हारी मदद के लिए।“
रोशनी ने कहा, “अरे कोई बात नही मैडम! आज ना बस्ती पर शाम को प्रेयर है। कोपरगांव से फादर आते है। हर बुधवार के दिन प्रार्थना होती है। शायद मैंने पहले भी इसका जिक्र किया था।“
“हां! मुझे याद है तुमने कहा था।“, मैरी ने कहा।
“तो आज शाम को प्रेयर के लिए आना। मैं आपको लेने आऊंगी।“, रोशनी ने कहा।
“हां! अब यहां पर ही हूं तो मैं जरूर आऊंगी।“, मैरी ने कहा।
“लेकिन मुद्दे की बात यह है की प्रेयर के बाद आपको हमारे घर भोजन करना होगा।“, रोशनी ने हंसते हुए कहा।
मैरी ने भी सहमति दर्शाते हुए कहा।,”अरे हां जरूर। आज शाम को तुम्हारे घर भोजन भी करूंगी।“
फिर विलास और रोशनी अपने घर चल दिए। आज रात क्या बनेगा घर में अंडा या चिकन इस बात पर चर्चा करते हुए।
मैरी अकेली आंगन में खड़ी अपने बंगले को देख रही थी। और उसने फिर एक बार लंबी सांस छोड़कर मुस्कुराते हुए खुदसे ही कहा, “आखिरकार मैं लौट आई अपने घर।“
अचानक से उसे एक आवाज सुनाई दी, “मैरीss!”
वह थोड़ा सा डर गई। शायद उसका वहम होगा ऐसा सोचकर मैरी उस आवाज को नजरंदाज करके अपने घर में चली गई।
By Kishor Ramchandra Danake
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