By Shalabh Maheshwari
किसी को रात को जुगनू भी जल कर देखते हैं,
जो देखते हैं लोग उसको थम कर देखते हैं,
है इश्क आग तो इसपर भी चल कर देखते हैं,
अब सोच लिया है तो चल, उसका बन कर देखते हैं।
उसे गुरूर है कि उससा ना कोई दिखता है,
है नूर ऐसा कि जैसे कोई फरिशता है,
अब दिखता वो ही है, मुड़ के जिधर भी देखते हैं,
ऐ यार चल अब उसके दिल मे उतर कर देखते हैं।
है हुस्न ऐसा कि हर फूल भी शरमा जाए,
ना पीछा छोड़े उसका नज़रे, वो जहाँ जाए,
देखने को उसको घर मे लोग, छज्जो पे चढ़ कर देखते हैं,
गुजरती है बाजारों से तो नजरे पलट कर देखते हैं।
क्या इश्क की उसको भी कोई जरूरत है,
है पूरा खुद मे वो इतना वो खूबसूरत है,
नज़र ना लग जाए, थोड़ा संभल कर देखते हैं,
यकीन होता नही, सो आँखे मल कर देखते हैं।
हुजूम लगता है, वो जिस गली गुजरता है,
है वो शरीफ, सो अक्सर ही परदा रखता है,
दिऐ जला के लोग, रातों मे जग कर देखते हैं,
मुर्दे भी कब्र से बाहर निकल कर देखते हैं।
है जन्नत की अप्सरा, कहाँ मुझसे उसका नाता है,
मगर ये दिल है कि हरदम उसी पे आता है,
ना माने फिर भी आज उससे बात कर कर देखते हैं,
शलभ, महौब्बत मे चल उसकी मर कर देखते हैं।
By Shalabh Maheshwari
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