By Neha Mishra
किसी जालसाज ने ये अफवाह फैलाई है
चाँदनी आज ज़ेर-ए-नकाब में आइ है ।
असरार -ए-खुदी जब सबने खोल दिये
कोई लगा चिल्लाने कि देखो रोशनी छाई है ।
मैं ही मैं मुश्तहिर हूँ बज़्म-ए -जाना में
जिंस-ए-उल्फत बहुत हैं,मुझे खुदा चाहिये ।
करतब देख कर बच्चे अपना गम भूल जाते हैं
इंतहा-ए-इश्क की कहाँ कोई दवाई है ।
खुद ही तंज कसते हैं खुद ही रूठ जाते है
जरूर उसकी खुदा से या खुद से लडाई है ।
By Neha Mishra
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