By Shivansh Soni
घर से अकेला निकल आता हूं रातों में,
बैठ किसी टपरी पर मन की बात लिख लेता हूं।
कुछ तो जादू है इन चाय की चुस्कियां में,
जो अनजानों से भी बेझिझक बात कर लेता हूं।
बाकी वक्त बीत जाता है किताब के पन्नों में
और इस कदर में हर दिन को अलविदा कह देता हूं।
By Shivansh Soni
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