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जड़ता की अनुभूति जरा तुम पूँछो उस पत्थर से …

By Dr. Anil Chauhan "Veer"


जड़ता की अनुभूति जरा तुम पूँछो उस पत्थर से ।

पृथक हुआ है जो स्वेछा से, गिरिराज के सर से ।।


उसको भी है ज्ञांत, नहीं अधिकार जड़त्व का बहना ।

किंतु उसे स्वीकार नहीं, जड़ हो पर्वत पर रहना ।।


चूमेगा वो धरा तभी, जब पर्वत से छूटेगा ।

ये भी है संज्ञान, धरा को चूम के वो फूटेगा ।।



किंतु गतिज होने की उसमें प्रबल चाह कुछ ऐसी ।

मृत्यु सदृश थी जो उसने फिर चुनी राह कुछ वैसी ।।


बिखरूँगा कण -कण मैं, एकात्म न रह पाऊँगा ।

किंतु रहा गतिमान, जगत को यह तो कह पाऊँगा ।।


किसी शीर्ष पे जड़ रह करके जीवन जीते जाना ।

अहो भाग्य! इस से तो अच्छा है गति में मर जाना ।।


By Dr. Anil Chauhan "Veer"





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