By Bhagyalaxmi
जन्म से ही खुश होते या रोते उसके आने पर,
माने उसै घर की लक्ष्मी या कहे उसै पराय धन,
आसमान को छूने की उम्मिद दे या बंधे उसै समाज की बेड़ियों में,
आज़ादी दे या रोक-तोक करे रहती है इसी झमेलो में,
चाहे उसै उड़ता दख या बंधे उसै किसी डोरी में,
अब डालते है हम यही विकल्प हम उसकी झोली में।
By Bhagyalaxmi
Comments