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जब चली ये कलम

By Garima Dixit


जब चली ये कलम तो,

मनोभाव छप गए| 

दिल की बातें किसी को न कही वो,

हम आज लिख गए| 


जब चली ये कलम तो,

कुछ अनोखे लब्ज़ छप गए। 

जो मन की बात मन में थी,

वो हम आज लिख गए। 


जब चली ये कलम तो,

दिल के सारे दर्द मिट गए। 

जिसको सोच हो रहे थे दुखी ,

वो हम आज लिख गए। 


जब चली ये कलम तो,

दूसरों के विचार बदल गए। 

जो थी बड़ी बातें,

वो हम कुछ शब्दों में लिख गए। 


न तलवार से न वॉर से ,

बस कलम के प्रहार से,

हम एक क्या, हज़ारों युद्ध जीत गए। 

जब चली ये कलम तो,

दूसरों के जज़्बात  बदल गए। 


By Garima Dixit


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