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जवानी

Updated: Apr 6, 2024

By Avaneesh Singh Rathore


थरथराती उंगलियां कह रही थी दास्तां

बता रही थी इक कहानी मुसाफिर की

जो ढूंढने निकला चार दिन की जान

घर छूटा सपने के आशियाने को

परिवार छोड़ा रोटी तलाश लाने को

उमर पूरी भागता रहा सबसे आगे निकल जाने को



देखा पीछे छूट गया सब जमाने को

जवानी भर भागा सबसे दूर जाने को

अब बुढ़ापे में ताकत नहीं वापस आने को

ये कथा है या व्यथा आज की

या उमर भर का अनुभव कोई

या आखिरी पड़ाव का बचा हिसाब कोई

थरथराती उंगलियां कह रही थी दास्तान


By Avaneesh Singh Rathore




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