By Mohd Shakeb ("Shauk-E-Shakeb")
जीने की आरज़ू है अभी,
सांस बाकी जो है अभी।
शुक्र भेजना है उसको,
कि महफ़ूज़ जो हर वबाओं से हूँ मैं अभी।
लाखों ग़मो ने घेरा हो या कितने धोखे खाए हो,
याद है, वो चंद लोग, जिनके लिए जीना है अभी।
तुम मेरी, मैं तुम्हारी, दीद के काबिल हूँ या न हूँ सही,
जीना है उन आँखों के लिए, जिनका तारा हूँ मैं अभी!
By Mohd Shakeb ("Shauk-E-Shakeb")
Comments