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जीने की रज़ा

By Garima Dixit


चल रहे थे जोखिम भरे राह पर यूं ही, 

नहीं खबर थी कि जो है रास्ता सबसे खूबसूरत

मिलेंगे कांटे और कंकड़ वहीं | 

 

एक है जिंदगी मेरी

और लाखों सपने,

न रह जाए कोई अधूरा

इसलिए बिन सोचे बस चल पड़ी,

उन्ही भेडों की तरह,

न पता था कि मंजिल कहां है

और आगे बढ़ने की वजह |

 

लग रही थी दुनिया बहुत बड़ी

और थी प्रतिस्पर्धा से भरी |

माना था मैंने भी, कि भीड बहुत है

मगर मुझे बनानी थी अपने लिए जगह |

 

लोगों ने रोका है बहुत मगर,

जीना है मुझे ऐसे कि ना ढूंढनी पड़े 

दो पल और जीने की वजह 

और ना ही लेनी पड़े जिंदगी से 

चार दिन और जीने की रज़ा |

 

याद नहीं मुझे वो बेबस लम्हें, 

पर चाहूं कि बन जाए वो स्वर्ण पल, 

जब मेरा ये चंचल मन, 

इस तन की धड़कनो को थाम ले, 

और आत्मा दूसरे शरीर में ले प्रवेश, 

उस वक्त बढ़ जाए वायु की गति, 

और हर दिल की आवाज़, 

हो जाए सबको एहसास 

कि एक सुंदर काया ने दिया है मोह माया हो त्याग |


By Garima Dixit


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