top of page

जीव-जंतुओं की गरिमामय जीवन एवं मृत्यु का अधिकार

Updated: Jan 18




By Surjeet Prajapati

 

हमारे देश में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में एक सबसे बुरी परम्परा रही है, वो है मैला उठाने वालों से, चर्मकारों से, गरीबों से, काले लोगों से घृ‌णा करने की परम्परा। यूरोपीय देशो में काले लोगों से घृणा करते थे और औरतों को सिर्फ हमारे देश में ही नहीं विश्व के अन्य देशो में भी हीनता का व्यवहार किया जाता था। प्लेटो व अरस्तू जैसे पाश्चात्य विचारक भी महिलाओं को हीन समझते थे, जिसके लिए प्लेटो महिलाओं के साम्यवाद की बात करता है तथा विवाह वर्जित करता है तथा महिलाओं के साम्यवाद की व्यवस्था करता है वहीं अरस्तू अपने दर्शन में, महिलाओं, बच्चों, उत्पाद‌क वर्गों को नागरिक नहीं मानता था व इन्हें राज्य की किसी भी क्रिया में भाग लेने का अधिकार नहीं देता है। 

भारतीय ग्रन्थों में भी चाहें वो वेद व्यास रचित महाभारत महाकाव्य हो या मनु का राजशास्त्र हो, शुक्र द्वारा रचित शुक्रनीतिशार हो या चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र हो सभी में  चार वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शूद्र का निर्माण करते हैं व उनके ‌द्वारा भी महिलाओं, निम्न जाति के लोगों व दासों को शासन के किसी भी क्षेत्र में भाग न लेने-देने का प्रबंध किया गया है। बनाई गई ये वर्ण  व्यवस्था आज भी हमारे देश में कायम हैं, जिसका अभी भी लोप नहीं हुआ है ये जानते हुए भी कि  हमारे  राष्ट्र के लिए  एक भयाबाह बीमारी की तरह है। चूंकि  ये समाज का वो वंचित वर्ग है जिसे कभी ऊपर उठने का मौका नहीं मिला, हालांकि एक लम्बे समय से इनके उद्धार के लिए प्रयत्न किये जाते रहे है तो कहीं जाकर उन्हें देश की आजादी के बाद हमारे संबिधान में उनके ऊपर उठने के लिए आरक्षण की व्यस्वस्था की गई इस प्रकार उन्हें ऊपर उठने का मौका मिल गया।

परन्तु, हम जिनकी भाषा समझ नहीं पाते या जो अपनी भाषा में या हमारी भाषा में  हमें  कुछ बता नहीं पाते वो निर्दोष, नि:सहाय जानवर क्या करें, कैसे अपनी पीड़ा न्यायाधीशों को बताएँ, कि उन्हें पीने के लिए नाली का पानी, रहने लिए बिना पेडों का खुला आसमान है, जिसमें वो बारिश के मौसम में भीगते हैं व गर्मी के मौसम में तपन, और सर्दी में सर्दी सहते हैं, कैसे बताएं कि उनके भोजन आप विकासवादी मानवों ने छीन लिया है, जंगल काटते जा रहे हो जलाशय पाटते जा रहे हो, कैसे कहें कि आपने तो उनके रहने के पहाड़ों के जंगल भी नष्ट कर दिये जो उनके रहने के एक सबसे अनोखे और उचित स्थान थे। 


जिस प्रकार रोटी, कपड़ा और मकान हर व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएं है उसी प्रकार, कपड़ों को छोड़कर बची दो मूलभूत आवश्यकताएँ पशुओं की भी हैं। कपड़ा तो उसके लिए व्यर्थ की चीज है क्योंकि आप सबको पहना नहीं पाओगे, और वो पहन नहीं पायेंगे। इसमें मैं जोकि मानव अपने लिए भी बहुत महत्वपूर्ण मानता है, और मैं इनके लिए भी मानता हूँ और वास्तव मैं हैं भी, “स्वतंत्रता और गरिमामयी जीवन मानव व गरिमामय मृत्यु का अधिकार” मानव को तो प्राप्त है परन्तु इन पशुओं को पूर्णतया नहीं। इनसे सबसे विलग मैं इन पशु व पक्षियों का एक और अनन्य अधिकार मानता हूँ, “गरिमामयी मृत्यु के उपरान्त गरिमामयी अंतिम संस्कार का अधिकार” जो कि इन्हें कदापि उपलब्ध नहीं हुआ, एक विचारणीय प्रश्न है।

आज से करीब बीस वर्ष पहले ही एकड़ों से जमीन खाली रहा करती थी जहाँ तक नजर जाती खेत ही खेत हुआ करते थे, आज जनसंख्या विस्फोट इतना भयानक हुआ कि लोगों ने अपने रहने की तो जगह बना ली परंतु इन निर्दोष बेजुबानों के रहने की जगह तमाम कर दी, खतम कर दी, दूसरे कि इनके दिमाग  में एक उन्नति का कीड़ा जो घर कर गया था, उसने तो इन पशुओं का जीवन ही खतरे से खाली नहीं रखा, तब जिधर भी निकल जाते थे तालाब ही तालाब जंगल ही जंगल हुआ करते थे जिनमें पक्षी प्रवासी व स्थानीय विहार किया करते थे, क्रीडा किया करते थे, दूर-दराज के पशु भी एक दूसरे के इलाके में घूमने निकल आया करते थे। उदाहरण के लिए मेरे ही घर के पीछे पश्चिम दिशा में एक किलो मीटर दूर कम से कम पाँच-छ:  बड़े तालाब हुआ करते थे जिनको कि सत्ताधारी पार्टी के लोगों ने कब्जा कर लिया और उन पर अपनी औद्धोगिक इमारतें खड़ी कर दी। अब सिर्फ एक तालाब बचा है वो भी पहले बेच दिया गया चोरी से, फिर उस पर खड़ी नीवों को फिर नष्ट किया गया तो उसे पुनः तालाब का रूप दिया गया। हालांकि उसके आस-पास बस्ती है जो उसमें कूड़ा कचरा फेंकती रहती है जिससे वो अब बहुत गंदा रहता है अब उसमें पानी तब ही जमा होता है जबकि बहुत बारिश हो या बाढ़ आ जाए। मैं चाहता हूँ कि उसमें वर्ष भर पानी रहे और उसके चारों ओर हरियाली हो और उसका सौन्दर्यीकरण हो।

आज पशुओं के पीने को पानी नहीं है, पंछी विहार नहीं करते, क्यों? क्योंकि तालाब नहीं हैं, और एक आध हैं तो उनमें पानी नहीं है, और यदि है तो वह मैला कुचैला आज पशु व पक्षी दोनों के लिए यदि कोई जल पीने के लिए उपलब्ध है तो वह है प्लास्टिक व सोडा का घरों से निकला गंदा पानी जिससे सिर्फ बीमारियां होतीं हैं और कुछ नहीं। माना कि भारत सरकार के द्वारा सभी प्रकार के पशुओं आवारा, पालतू जंगली, के लिए कानून बनाये गए हैं, जैसे- वंन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960, भारतीय दण्ड संहिता 1960 व एक बोर्ड (भारतीय पशु कल्याण बोर्ड: प्रमुख पहल) का निर्माण भी भारत सरकार के द्वारा किया गया है। परंतु जैसा कि इसमें सभी कानूनों का सख्ती से अनुपालन की बात कही गयी है क्या सरकार ने कभी जमीनी स्तर पर इसकी पड़ताल भी की है कि ये सभी सुविधाओं जिनका कि इसमें जिक्र है पशुओं को प्राप्त हो भी रहे हैं या नहीं। मैं भारत सरकार के गौ-वंशीय पशुओं की हत्त्याएँ, व वध रोकने के कानून का स्वागत करता हूँ, परंतु लाइसेंस और बिना लाइसेंस की व्यवस्था की आलोचना करता हूँ और मैं अपने इस लेख के द्वारा अपने इस समाज से भी कहना चाहता हूँ कि एक तरफ आप गौ-वंशीय पशुओं के वध को रोकने की बात करते हो दूसरी ओर उन्हें खुला छोड़ देते हो जिससे वो असामयिक मृत्त्यु व प्राकृतिक और मानवीय दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं, तो ये दोगलापन क्यों करते हो। या तो पशुओं को पालना बंद करो या फिर सभी पशुओं दुधारू व गैर दुधारू सभी की तब तक देख भाल करो जब तक कि वो स्वयं से मृत्यु को प्राप्त न हो जाए। आज पर्यावरण को  नुकशान  पहुँचाती ये मानव जाति स्वयं चिंतित है, क्योंकि ये वन्य जीवों में कुछ विशेष प्राणियों को लुप्त होते पा रही है। जैसे भारत में- पशुओं की कुछ विशेष प्रजाति-  बंगाल टाईगर, एशियाई शेर, हिम तेंदुआ, एक सींग वाला गेंडा, काला हिरण, शेर-पूछ वाला मैंकाक,  देदीप्यमान वृक्ष मेंढक, कश्मीरी लाल हिरण, नील गिरी तहर, भारतीय बाईसन (गौर) व पक्षियों की गंभीर रूप से लुप्त होती प्रजातियाँ- ग्रेट साइबेरियन, इंडियन बस्टर्ड, सफेद पीठ बाला गिद्ध, लाल सिर बाला गिद्ध,  जंगली उल्लू, सफेद पेट बाला बगुला, स्पून बिल्डर सैंडपाइपर, मणिपुर बुश क्वेल आदि के लिए बचाओ अभियान चलाये जा रहे हैं, परन्तु क्या इन नाममात्र बचाओ अभियानों से वापस उतनी ही तादात में प्राप्त हो जायेंगी? शायद नहीं। ये बची रहें विलुस्त न हो इसके लिए मानव जाति को अपनी जनसंख्या में कमी करनी चाहिए अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाए तो कहीं जाके हल्का फुल्का कुछ बदलाव होगा। इसके लिए सरकार सख्ती से “जनसंख्या नियंत्रण कानून” को लागू करना चाहिए, जिसके लिए दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों की सभी प्रकार की सुविधाओं पर अंकुश लगा देना चाहिए। फिर चाहें वो कोई भी जाति धर्म का हो, जो कोई ऊपर वाले की दुहाई दे तो उसे उसी के उपर छोड़ देना चाहिए, और हमें विकास की अनुचित होड़ को छोङना होगा। 

एंथनी डगलस विलियम्स ने, “INSIDE THE DIVINE PATTERN” में लिखा है “जानवरों को इस धरती पर रहने के लिए हमारी अनुमति की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। हमारे आने से बहुत पहले ही जानवरों को यहाँ रहने का अधिकार थ। आज मानव की जिंदगी ऐसे भाग रही है जैसे पटरी  पर दौड़ती super-fast train or bullet train  ट्रेन अपने गंतव्य पर पहुंचकर रुक जाती है लेकिन बीच में तब तक नहीं रुकती जब तक कोई घटना न हो जाये, वो भी स्वयं के साथ। यही हाल आज के मानव का है, चलता चला जा रहा है किसी को किसी की कोई फिकर नहीं है। आज यदि कोई व्यक्ति सड़क पर पड़ा तड़प रहा है तो भी उसे कोई नहीं देखता, तो ऐसे में जानवरों पर कोई क्या ध्यान देगा, मैं देखता हूँ कि लगभग प्रतिदिन कोई न कोई वाहन छोटे या बड़े किसी न किसी जानवर को कुचल कर चले जाते हैं और उन कुचलने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं होती और न ही पुलिस ऐसी किसी बात को संज्ञान में लेती है। क्या जानवर का जीवन इतना अमूल्य है। यदि कोई शख्स ऐसे हादसों का शिकार हो जाता है तो समुचित कार्यवाही होती है उसका शव उस‌के परिवारीजन को सुपुर्द किया जाता है। सरकार की तरफ से अस्पताल अंतिम संस्‌कार करता है परन्तु यदि उसी स्थान पे वह जानवर है तो उसे चील कौआ नोचते है नगरपालिका वाले उसे कूड़े में डाल देते हैं, मैं चाहता हूँ कि उन्हें उनका “गरिमामयी अंतिम संस्कार” का हक मिलना चाहिए। इसके लिए क्योंकि आज का आदमी व्यस्त आदमी है तो सरकार को चाहिए कि इनके लिए अलग से कर्मचारी नियुक्त करे जो कि उनका अंतिम संस्कार करें।

मेरी मानव जाति से भी ये अपील है कि किसी भी ऐसे पशु को उसका हक दिलवाने में आगे आएँ, दूसरा यदि अगर आपसे ऐसी कोई दुर्घटना हो जाती है तो सरकारी कर्मचारी को उससे अवगत कराएं और साथ देकर उनका अंतिम संस्कार भी कराएं, क्योंकि हम सभी इन बेजुबानों का परिवार हैं। हमें चाहिए कि हम अपने तुच्छ स्वार्थों का त्याग करें, व खुद जिए और इनसे इनके जीने का अधिकार न छीने।

अभी इसे लिखते वक्त एक घटना आज 6/1/2021 को मेरे सामने घट गयी और तारीख मैं मेरा अधिकार उसे रोक लेने का होते हुए भी असहाय खडा उसे देखता रह गया। ये कि, कुछ लोगों ने घूमते - खेलते-खाते, प्रकृति प्रदत्त जीवन जी रहे सुअर को और चाकू से गोद‌कर मार डाला, जब वो चीखा तो मैंने देखा उससे पहले मैं उस घटना को नहीं देख पाया उसकी चींखें मेरे कानों के पर्दे फाड़ रही थी उसके साथ घटी घटना ने मेरे ह्रदय को भेद दिया मैं सिहर उठा, उन्होंने उसके चाकू से गोदने वाली जगह पर से बहते खून को रोकने के लिये वहीं कूड़े बाली जगह से 4-5 कागज के टुकड़े उठाकर और सीने की खाल उठाकर उसमें डाल दिये ताकि खून बंद हो जाए। ये सब क्रूरता की हद को पार कर देने बाला था।  मैं चाहता हूँ कि ऐसे क्रूर लोगों के प्रति सजा का उचित प्रावधान हो फिर चाहें वो लाइसेंस के बल पर ही क्यूँ न ऐसा कर रहा हो। तो मैं इन सरकारों से पूछना चाहता हूँ कि क्या जिसे लाइसेंस मिल जाता है उसे किसी भी जीव को किसी भी तरीके से मारने का हक मिल जाता है। मैंने ये लाइसेंस की बात इसलिए की क्यूँकि उस सुअर की हत्या शायद लाइसेंस अधिकार क्षेत्र में हुई और उसकी कीमत 4000 रु० आंकी गयी थी। 

इन सभी बातों के परिप्रेक्ष्य में कुछ बातों को और कहना चाहूँगा कि, समस्त देशों को सरकारों ने जंगल कटवाएँ हैं परन्तु इन जंतुओँ के रहने के लिए जंगल बनाये नहीं हैं। गगनचुंबी  इमारतें बनाई हैं, परमाणु संयंत्र खड़े किये हैं, बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां लगाई हैं, विशालकाय मशीनरी का भी निर्माण किया है, क्या आपको लगता है इन्होंने विकास किया है, मुझे नहीं लगता। ये अत्यधिक विकास विनाश को जन्म दे रहा है। सिर्फ एक साम्राज्यवादी मनोदशा के कारण न ये कब्जे की लालसा रखते और न ही हम विनाश के इतने करीब पहुँचते। मैं चाहता हूँ कि यदि देशों को युद्ध लड़ना ही है तो गरीबी के विरूद्ध युद्ध करें, बेरोजगारी के विरुद्ध युद्ध करें,  मानव कल्याण के लिए युद्ध करें, जानवरों के कल्याण व उनके संरक्षण के लिए युद्ध करें प्रकृति के संरक्षण के लिए युद्ध करें,  और युद्ध करना ही है तो आतंकवाद के विरुद्ध समस्त देश मिलकर युद्ध करें। आतंकवाद में अच्छा या बुरा आतंकवादियों जैसा कुछ नहीं होता आतंकवादी सिर्फ और सिर्फ आतंकवादी होता है। (अच्छे और बुरे आतंकवादीयों की बात अमेरिका ने की)। 

आज सभी देशों को समझना चाहिए कि आज का युग सभी को साथ में लेकर चलने का युग है तो राष्ट्रों को आपस में लडाई व कब्जे की भावना को त्याग देना चाहिए ताकि प्राणी मात्र का जीवन सुरक्षित हो और पर्यावरण को भी कोई हानि न पहुंचे। मैं मानता हूँ कि इस विकास ने हमारे हजारों काम आसान किये हैं परन्तु में ये भी कहूँगा कि “अत्यधिक विकास हमें विनाश की ओर धकेल रहा है”। क्योंकि हम मानव हैं हमारे द्वारा किये गये इन विनाशकारी कार्यों की जानकारी हमें है बखू‌बी है तो भी हम अपने जीवन, स्वतंत्रता, सम्पत्ति और ऐसे ही अन्य अधिकारों की मांग करते हैं, तो हमें जंतुओं के जीवित रहने का हक उन्हें लौटाना होगा उन्हे खुद की मृत्यु मरने देना चाहिए और जितनी दया कृपा हम मनुष्यों के प्राणों के लिए दिखाते हैं हमें उनके प्राणों के प्रति भी दिखानी चाहिए। हमारी स्वार्थी शक्तियों का कोप ये निःसहाय निर्दोष प्राणी भी सहें ऐसा क्यों है?


By Surjeet Prajapati





1 view0 comments

Recent Posts

See All

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
SIGN UP AND STAY UPDATED!

Thanks for submitting!

  • Grey Twitter Icon
  • Grey LinkedIn Icon
  • Grey Facebook Icon

© 2024 by Hashtag Kalakar

bottom of page