जीवन ज्योति
- hashtagkalakar
- Sep 5, 2023
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Updated: Mar 12, 2024
By Kamlesh Sanjida
भोर भई है कुछ अब ऐसी,
चिड़ियाँ चहक़ी मुर्गा बोला
नींद अभी भी खुली नहीं थी,
सूरज ने भी फ़ाटक खोला ।
कहीं सुनहरी धूप खिली तो,
कहीं गड़गड़ाकर बादल बोला
चंद बारिश की बूंदों से ही,
तब कलियों ने घूँघट खोला ।
कुछ फूलो ने ली अंगडाई,
और अपना फिर रुप दिखाया
एक नए जीवन की ख़ातिर,
फिर हमसे ही रिश्ता जोड़ा ।
सर-सर सर-सर हवा चली फिर,
तिरंगे का भी मन है डोला
लहरा आसमाँ की ऊँचाई,
उसमे कुछ सुकून सा घोला ।
फर-फर फर-फर तिरंगा करता,
हमको भी तो याद दिलाता
आजादी की वर्ष गाँठ है,
देश भक्तों का मान बढ़ाता ।
लाल-लाल लालिमा छाई,
आसमाँ का फिर मन डॊला
ठंडी-ठंडी पवन चली फिर,
तन-मन में रस सा घोला ।
रंग बिरंगा धरती का चोला,
ओस की बूंद देख मन डॊला
बारिस कीं जब पड़ीं फुहारें,
तब जाकर पपिहा ने मुँह खोला ।
धूप सुन्हरी पीली-पीली,
सुबह-सुबह वो लगे निराली
पंक्षीयों ने दौड़ लगाई,
खेतों में हरियाली छाई ।
चारों तरफ अब शोर मचा है,
कहीं कौआ तो कोयल बोली
गिलहरी ने भी दौड़ लगाई,
धीरे-धीरे सबने आँखें खोलीं ।
सूरज ने दी फिर गरमाई,
आँखें भी सबकीं सरमाईं
छीन अंधेरे कि चादर को,
जैसे कर दी ख़ूब धुलाई ।
चमक उठा आसमाँ सारा,
आँखों से दी निदिया भगाई
जाग उठी है दुनियाँ सारी,
कलि-कलि तब मुस्काई ।
मिट गया तब सारा अंधियारा,
जब सूरज ने आँख दिखाई
हर एक चीजों के भीतर,
तूने ही जीवन ज्योति जलाई ।
By Kamlesh Sanjida
प्रकृति को समर्पित कविता