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जीवन ज्योति

Updated: Mar 12, 2024

By Kamlesh Sanjida


भोर भई है कुछ अब ऐसी,

चिड़ियाँ चहक़ी मुर्गा बोला

नींद अभी भी खुली नहीं थी,

सूरज ने भी फ़ाटक खोला ।


कहीं सुनहरी धूप खिली तो,

कहीं गड़गड़ाकर बादल बोला

चंद बारिश की बूंदों से ही,

तब कलियों ने घूँघट खोला ।


कुछ फूलो ने ली अंगडाई,

और अपना फिर रुप दिखाया

एक नए जीवन की ख़ातिर,

फिर हमसे ही रिश्ता जोड़ा ।


सर-सर सर-सर हवा चली फिर,

तिरंगे का भी मन है डोला

लहरा आसमाँ की ऊँचाई,

उसमे कुछ सुकून सा घोला ।


फर-फर फर-फर तिरंगा करता,

हमको भी तो याद दिलाता

आजादी की वर्ष गाँठ है,

देश भक्तों का मान बढ़ाता ।


लाल-लाल लालिमा छाई,

आसमाँ का फिर मन डॊला

ठंडी-ठंडी पवन चली फिर,

तन-मन में रस सा घोला ।



रंग बिरंगा धरती का चोला,

ओस की बूंद देख मन डॊला

बारिस कीं जब पड़ीं फुहारें,

तब जाकर पपिहा ने मुँह खोला ।


धूप सुन्हरी पीली-पीली,

सुबह-सुबह वो लगे निराली

पंक्षीयों ने दौड़ लगाई,

खेतों में हरियाली छाई ।


चारों तरफ अब शोर मचा है,

कहीं कौआ तो कोयल बोली

गिलहरी ने भी दौड़ लगाई,

धीरे-धीरे सबने आँखें खोलीं ।


सूरज ने दी फिर गरमाई,

आँखें भी सबकीं सरमाईं

छीन अंधेरे कि चादर को,

जैसे कर दी ख़ूब धुलाई ।


चमक उठा आसमाँ सारा,

आँखों से दी निदिया भगाई

जाग उठी है दुनियाँ सारी,

कलि-कलि तब मुस्काई ।


मिट गया तब सारा अंधियारा,

जब सूरज ने आँख दिखाई

हर एक चीजों के भीतर,

तूने ही जीवन ज्योति जलाई ।


By Kamlesh Sanjida



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प्रकृति को समर्पित कविता

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