By Anushka Tyagi
यह जीवन कितना सुंदर है,
इसके हैं रूप अनेक मगर।
परिभाषित होते हैं मन में,
खुश हो कभी भावुक होकर।
जो ढंग से ही अपना कर के
जीते हैं खुशहाली में,
मर कर भी इस दुनिया में
हो जाते हैं वह लोग अमर।।
कभी खारा कभी मधुमेह होता जीवन सुख दुख की छाया है।
यह बूंद बर्फ झरना बनकर
कभी सागर में समाया है।
जो रमता है बागानों में,
पशुओं में और इंसानों में,
कभी मंत्रमुग्ध हो जाता मन
ये ही सृष्टि की माया है।
आनंदित होकर प्रकृति ने जीवन का राग सुनाया है।
इंद्रधनुष के सात रंग सा इसने साथ निभाया है।
विविधता में बंटकर भी जो आत्मसात हो जाते हैं,
कलाकार रहा होगा कितना जिसने इन्हें मिलाया है।
अभावों से शुरू होता जीवन स्वभाव स्वयं बन जाता है।
सद्भाव रहे स्वाभाविक अगर प्रभाव स्वयं बन जाता है।
कांटो से भरी जीवन की डगर कभी मखमल यह लगता है,
समय के मापदंड पर ये
समभाव स्वयं बन जाता है।
परिकल्पना जीवन की जब चार भागों में होती है।
बचपन से बुढ़ापे की जिंदगी
बंधी धागों में होती है।
माटी से पैदा होकर जब माटी में मिल जाते हैं,
आरंभ से अंत तक की गाथा पूरी रागों में होती है।
शैशव में जब हृदय में
रंग अनेक उमड़ते थे।
खेल-खेल में दुनिया सिमटी
प्यार सभी से करते थे।
भोलापन स्वभाव में रहता था
और निश्चलता मुस्कानों में,
नाराज न होते थे किसी से
माफ सभी को करते थे।
संतोष धैर्य नहीं रहा
अब सब्र का आँचल छूटा है।
संयम का दामन दूर हुआ
जो चाहा था वो रूठा है।
जवानी में जिम्मेदारी और
समझ का श्रोता फूटा है,
वृद्ध लाठी लेकर बच्चा बन फिर उम्मीदों से टूटा है।
जीवन जितना सरल समझो उतना ही जटिल होता।
उल्लास भरा जितना मन में अवसादों से चोटिल होता।
अश्कों से भरा है प्यार कहीं
विरोधाभास ये लगता है,
कभी जनमोत्स्व, वहीं अन्त्येष्टि
तब जीवन बड़ा कुटिल होता।
प्रकृति के कण-कण से
संदेश सूमन भी खिलते हैं।
सुगंध बिखेरते पुष्प भी
झरकर मिट्टी में जब मिलते हैं।
उर्वरा शक्त बढ़ती है,
महके जिससे उपवन सारा,
हरे-भरे हँसते मधुबन भी
पतझड में धूल में मिलते हैं।
चलना पडता अनजाने में
कभी अनजानी- सी डगरों पर।
मन के भाव प्रतिबिंबित हो
इतिहास के पन्नों पर।
सुख-दुख के भवरों में
स्वयं को आत्म विजयी बनाना है,
यह जीवन मिल कर जीना है।
मुस्कान रखी हो अधरों पर।
यह जीवन कितना सुंदर है
इसके हैं रूप अनेक मगर।
By Anushka Tyagi
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