By Sampada Kulkarni
क्यों है डूबा सोच में
तूने क्या खोया क्या पाएगा
जो होना था वो हो चुका
जो होना हो, हो जायेगा।
क्यों लड़े अंधेरों से
जब हो सवेरा द्वार पर
क्यों डरे तूफानों से
जब लक्ष्य तेरा हो शिखर।
है निपुण हर कार्य में
फिर क्यों सोचे तू नाकाम है
ठोकर खाई है हज़ार पर
अब कहां विराम है।
मुश्किल यहां कुछ है नहीं
जो है वो तेरे दिल में है
वो डर भी सत्य है नहीं
जिस डर को सच माने है।
तू जो सोचे वो पाएगा
पल वो आज नहीं तो कल आयेगा
पर हौसलों को यूं हारने से
वो मंजर भी कैसे आयेगा।
तू तो केवल कर प्रयास
जो होगा देखा जायेगा
जो होना था वो हो चुका
जो होना हो, हो ही जाएगा।
By Sampada Kulkarni
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