By Akansha Gendre
उन्हें दिल से निकाला ही कब था
जो फिर से बसा ले,
जन्नत जैसे सपने सजाए थे,
अब कांटों भरी राह पर गिर पड़े।
पूरी दुनियां कुर्बान कर कर बैठी थी
न सुबह समझ आए न सांझ,
अब वो टूटे वादों को याद कर
क्यों आंखों से बहाना चाहूं मैं बांध?
भूलना उनको इस जन्म में मुमकिन नहीं
तो उसकी यादें ही दफ्न कर देती हूं,
अगर मेरा प्यार इतना ही कमज़ोर था,
तो दुआओं में उसे अभी भी क्यों मांगती हूं?
By Akansha Gendre
Comments