By Mogal Jilani
इधर उधर न देखना
गर हमें ढुंडना हो कभी
अमनो अमा के दौर में
हम खिदमत-ए- खल्क में मिलेंगे।
या पहेली सफ में खड़े
हम तहरीक-ए-हक में मिलेंगे
या पहेले हर्फ में लिक्खे
हम तहरीर-ए-हक मिलेंगे।
गर देर हो गयी
हमे ढुंडने में कभी
तो फिर कत्र-ए-लहु बन कर
हम ख़ाके जूनू में मिलेंगे।
या ज़िक्र ए शहिदे लब पर
हम ज़िक्र ए शहिदा बन कर मिलेंगे
By Mogal Jilani
Wonderful
Nice
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