By Swayamprabha Rajpoot
तुम इससे बेहतर हो सकते थे शायद...
गर गिरने वाले पे हँसने के बजाय हाथ थाम लेते तुम...
हर मिले सुख पर देने वाले का नाम लेते तुम...
ज़ब आती आँखों में नमी रो देते तुम...
जहाँ ज़रुरत नहीं थे वहां भी हँस लेते तुम...
तुम इससे बेहतर हो सकते थे शायद...
गर भूख लगने पर खाते और औरों को भी खिला देते तुम...
अपनों को तो हर कोई खुश रखता है,,
गर गैरों के लबों पर भी मुस्कुरा देते तुम...
दुनियादारी पे बहस ना करके अपने काम में लगे रहते...
इस दिखावटी दुनिया में रहकर भी प्रकाश सा बने रहते...
कर्म को पूजा मानकर निष्काम से लगे रहते...
ना सोचते कब मिलेगा फल फायदे नुकसान से परे रहते...
तुम इससे बेहतर हो सकते थे शायद...
गर भविष्य और भूत को छोड़कर वर्तमान में लगे रहते...
रौशनी की चाह छोड़कर अँधेरे में जले रहते...
यूँ वक़्त अब भी है अगर थोड़ा ध्यान करो...
वो जिस अच्छे इंसान की तलाश होती है हर किसी को,
क्यों ना किसी की तो तलाश ख़त्म करो...
ना इंतजार करो औरों की कहीं से तो आरंभ करो...
ना जाने कौन सी श्वास अंतिम होगी, मौत के बाद का अबसे कुछ तो प्रबंध करो....
तुम इससे बेहतर अब भी हो सकते हो शायद...
By Swayamprabha Rajpoot
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