top of page

तुम्हें लिखता रहूँगा

By Shivam Sarle


मैं तुम्हें लिख रहा हूँ, जाने कबसे,

और जाने कब तक, लिखता रहूँगा।

कितना लिखूं उन जुल्फों पर,

जो हर बार नया लिखवाती हैं।

चाँदी-से गालों पर आकर,

वो हर बार जरा इठलाती हैं।।१।।


उन गालों पर भी कितना लिखूं,

जो कभी गुस्से में फूल जाते हैं।

हर बार उन्हें मनाता मैं ही हूँ,

तब वो फिर खिल जाते है।।२।।


आँखों पर तो लिखता ही नहीं,

देख उन्हें सबकुछ भूल जाता।

नयन हटते ही नहीं मिलने पर,

बताओ फिर कैसे लिख पाता।।३।।


या कमल-पंखुड़ियों-से अधरों पर,

जो कभी दाँतो तले चबा जाते।

या फिर से उन तीखी नजरों पर,

जो इस दिल को घायल कर जाते।।४।।


अंत में फिर से यही कहूँगा,

कि हरदम तुम्हें लिखता रहूँगा।


By Shivam Sarle


1 view0 comments

Recent Posts

See All

Visitor

Not A War

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page