By Meghna Dash
कैद करके क्यों,
ज़ख्म को कुरेदती रही
चीखती-पुकारती सवालों के कटघरे में,
चीरकर मेरा दम क्यों ना तोड़-सी गई।
अंजान ना था, तेरे प्यार के दास्तां से
बस खुशियों की सौगात करने चला था मैं,
लायक बन दुनिया कदमों में करने चला था मैं।
पर,
हथेली में तेरी हँसी सम्भाल ना सका
तेरे धड़कनों की हिफाजत कर ना सका मैं।
रास्ता बदल देती
चुन लेती सांसों को अपने
इल्ज़ाम लगाती, हिसाब माँगती
अपना आशियाना कहीं और बसा लेती।
दर्द में राह क्यों देखती रही
बिलखती रही, क्यों सुलगती रही
अब कैसे मुक्त हो पाऊँ, तकलीफ कुछ ऐसे तेरे
कैसे माफ कर पाऊँ, कर्म कुछ ऐसे मेरे।
नाकामयाब रह गया तेरे हिम्मत के आगे
अधूरा-सा रह गया तेरे मोहब्बत के आगे।
क्या घुमा दूं समय का पइया,
बस इतना तू बता सके
खुदा से क्या छीन लूं तुझे,
बस इतना तू बता सके।।
By Meghna Dash
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