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तूफ़ान

By Kavita Chavda



वो मेरी आखरी रात थी पहाड़ो में। अगली सुबह में ये खुशनुमा पहाड़ो के साएं छोड़ के शहर की धुप में तपने जा रही थी। इन पहाड़ों ने मुझे तुमसे मिलाया था। मैं भी खानाबदोश लिबास में थी, तुम भी मुसाफिरों वाला दिल लिए फिर रहे थे। आदत सी लग गई थी बदलो में तुम्हारा हाथ पकड़ के चलने की। रास्ते में बरसात शुरू होते ही मेरा दिल तुम्हारे इश्क़ में गीला हो जाया करता था और जो कैफे में हम ठहरते थे, हमारे भीगे बदन इक दूसरे से दूर नहीं रह पाते थे। इस गांव का हर घर, हर कैफे और पहाड़ों का हर रास्ता हमारे साथ से वाकिफ था।


वो आखरी रात जब हम चादर तले लिपट के सोये थे, तुमने खिड़की से झांकते हुए कहाँ था की लगता है बारिश आने वाली हे। मेरा दिल इक आखरी बार तुम्हारे इश्क़ में भीगने को तैयार था। बरसात शुरू होते ही तुम मुझसे और कस के लिपट गए पर में बालकनी में बादलों को टूटता हुआ देखना चाहती थी। उस रात कुदरत मुझे मेरा आईना मालूम हुई।




बारिश के मौसम में अपनी मस्ती में लहराते बादल उस रात गरज गरज के बरस रहे थे। तुमसे बिछड़ने का दर्द तुम्हारे साथ बिताए खुशनुमा दिन रातों के एहसास से कहीं ज़्यादा था। वो पहाड़ों में बसे घरों की टिमटिमाती रोशनी धुंधली सी थी। मेरे अंदर का जहां भी उस रात अपनी रोशनी से मुकर चुका था। वो मकान जो हम रोज़ साथ देखा करते थे, जहां घर बसाने की बात किया करते थे, वो उस रात उठे तूफ़ान में गायब हो चुका था। दर्द से जिस तूफ़ान का आगाज़ हुआ था मेरे अंदर, वो ज़हन से दिल तक बढ़ चुका था। कुछ ही देर में बिजली ज़ोर से कड़कने लगी। काली स्याही में डूबी रात एक सेकंड के लिए वो नज़ारा दिखा गई जो हम रोज़ चांदनी रोशनी में साथ देखते थे। वो घरों कि रोशनी जिनसे हम पहाड़ों में रास्तों का अंदाज़ा लगाते थे, वो पहाड़ों का रात वाला चेहरा और इक घर जो हम दोनों जानते थे बसेगा नहीं पर वो बसाने की बाते किया करते थे।


मैंने भी जब पहली बार हां कहां था वो घर में बसने वाली बात पे, में खुद नहीं जानती थी वो मेरे लिए सच हो जाएगा। हम दोनों के नज़रिए में ये चार दिनों के साथ पे बसा रिश्ता सिर्फ खयाली तौर पे घर बसाने के लिए सही था। ये खयाली दुनिया कब मेरी हकीकत बन गई मुझे ख्याल ही नहीं रहा। शायद ये पहाड़ी गांव भी तैयार न था मौसम के यूं बदलाव के लिए। पर ये सब तुम्हें बताने का कोई मतलब नहीं था। तुम्हारी आंखों में मैंने वहीं मस्ती देखी थी जिससे हमारी शुरुआत हुई थी। तुम्हारे लिए वो घर आज भी खयाली था। मैं नहीं जानती ये मेरा तुम में अविश्वास था कि मेरे वहम।


तुम्हारे बालकनी में आते ही मेरी धड़कन तेज़ी से धड़कने लगी। अरे, तुम सोए नहीं, मैंने पूछा। तुमने कहां ये तूफ़ान का वीडियो लेना चाहता हूं। मेरी खुर्सी पे झुक के अपनी बाजुओं को मेरे कंधे पे आराम देकर, अपनी दाढ़ी मेरे सर पे रख, मेरे चेहरे के आगे अपना फोन पकड़ के तुमने तूफ़ान का वीडियो लेना जब शुरू किया, मेरी आंखों से तुम्हारा इश्क़ बरसना शुरू हो चुका था। बस यूं लिपट जाना चाहती थी तुमसे के कभी अलग ना हो पाऊँ।


मेरे कानों में हल्के से जब तुमने कहां तुम्हें अकेले थोड़ी जीने देता ये तूफ़ान, मेरे सारे वहम बरसती बारिश में बह गए।


By Kavita Chavda





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Beautifully written!! ❤️✨

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dhavalpandey235
Nov 23, 2022

Beautiful storytelling 👏🙌❤️

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jyotsnajoshi703
Nov 22, 2022

Beautifully articulated ❤️

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Siddharth Zaveri
Siddharth Zaveri
Nov 22, 2022

Beautiful!

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Ashish Bhardwaj
Ashish Bhardwaj
Nov 18, 2022

Great work Kavita..it’s really a good read.

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