By Shivansh Soni
खुल के जीता हूं हर दिन
दर्द सच्चाई के भी सहता हूं
तो क्या हुआ अगर
थोड़ा झूठ कहता हूं
दिल किसी का दुखाता नहीं
बस अपने राज छुपाता हूं
तो क्या हुआ अगर
आधि सच्चाई सुनाता हूं
अपनों को चिंता होगी नहीं
सोच के यही सुकून से खाता हूं
तो क्या हुआ अगर
इसकी कीमत झूठ से चुकाता हूं
ऐसे ही जीता हूं हर दिन
या शायद ऐसे ही जी पाता हूं
By Shivansh Soni
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