By Kavita Batra
माला लेकर हाथ में ,
तो ही क्यों नाम जप पाँऊ मैं,
सांस- सांस में जो सिमरूँ तुझे ,
तो क्यों, माला का उपकार पाऊँ मैं।
नाम -नाम के जपसे ,
तो ही क्यों धर्म को पाऊँ मैं,
कर्म -कर्म से क्यों ना बनूँ इन्सान मैं,
फिर कैसे ना मैं ,तुझी को , सब जगह पाऊँ मैं।
कलाकार हूँ तो अपना किरदार उसके हिसाब से ,
क्यों ना निभा लूँ मैं,
सर झुकाकर रहूँ मैं, फिर कैसे ना,
उसको अंग -संग पाऊँ मैं।
By Kavita Batra
Touched my heart
Wah wah
Amazing