By Anil Kumar Singh
मन में थोड़ी धूप,थोड़ी छांव लेके चलते रहे
हृदय में जलते हुए कितने अलाव लेके चलते रहे
भटकते रहे इस डगर-उस डगर,इस शहर-उस शहर
मगर सीने में हमेशा अपना गांव लेके चलते रहे
राहों की मुश्किलों से थके भी और हुए घायल भी
मगर रुके नहीं,हम अपने थके हुए,घायल पांव लेके चलते रहे
संवारते,समेटते रहे औरों को जितना हो सका हमसे हृदय में छुपाकर अपने सब बिखराव लेके चलते रहे
कुछ संबंध जिए कल्पनाओं में,अधिकार न कुछ मांगा न पाया
हृदय में बस अपने समस्त छुपे हुए भाव लेकर चलते रहे
जीवन के तूफ़ानों में डगमगायी कितनी बार साहस की नाव
मगर हम अपनी डगमगाती हुई नाव लेकर चलते रहे
पाप पुण्य, सही गलत का कभी आकलन नहीं किया
किसी अपरिचित के प्रति अपना सहज झुकाव लेकर चलते रहे
By Anil Kumar Singh
Comments