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दिल का दौरा

By Kishor Ramchandra Danake


आज सोमवार का दिन था। सुबह के १० बजे थे। बस्ती में सब अपने अपने काम में लग चुके थे। विलास और रोशनी अपने खेत में गए हुए थे। सुनील अपने काम पर गया था। जो शहर के एक बैंक में अकाउंटेंट था। उसकी पत्नी मंदा अपना घर का काम कर रही थी। उनके घर के बाहर आंगन में कुर्सी डालकर चाय पीते हुए अर्जुन, उत्तम, बापू, दादाभाऊ और शांताराम बैठे हुए थे। शांताराम अर्जुन, बापू, दादाभाऊ और उत्तम का रिश्ते में मामा था। उनके बुआ का पति। माना की शांताराम की उम्र लगभग ८० साल थीं और वह बूढ़ा होते चला था, लेकिन फिर भी उसकी सेहत अच्छी थी। ना कोई बीमारी और ना कोई तकलीप।

राजेंद्र और हिमेश के घर के बाहर आंगन में कुछ छोटे छोटे बच्चे खड़े थे। जो हिमेश की कार में बैठने की तैयारी में थे। हिमेश एक पाइप कंपनी में मैनेजर के पद पर था। राजेंद्र पहले ही काम पर जा चुका था। वह शहर के संजीवनी नाम के इंजीनियरिंग कॉलेज में मैकेनिकल डिपार्टमेंट में अध्यापक था। पेत्रस और आनंद भी उसी कॉलेज में पीवून थे। ऐसा समझे की सुनील, राजेंद्र और हिमेश ही थे जो जादा पढ़े लिखे थे।

पेत्रस की पत्नी लता और आनंद की पत्नी सारिका अपने काम में जुट गए थे। लीलाबाई, सरला और सुंदरा राजेंद्र के घर के बाहर आंगन में बैठे हुए थे। सुंदरा शांताराम की पत्नी थी। वे बूढ़ी औरते अपनी अपनी बाते कर रहे थे और बच्चों के नटखटपन का लुप्त उठा रहे थे।

“चलो बच्चो बैठ जाओ अब।“, अपनी कार साफ करना थमाकर और दरवाजा खोलते हुए हिमेश ने कहा। राजेंद्र की पत्नी उज्ज्वला और हिमेश की पत्नी जयश्री भी वही खड़े बच्चों का बैग, टिफिन, शूज और उनका यूनिफॉर्म ठीक करने में लगे हुए थे। यहोशवा ने आगे का दरवाजा खोला फिर वो और यश आगे बैठ गए। जयश्री ने पीछे का दरवाजा खोला फिर अंजली, रेशमा, जीवन, योहान, महिमा, सौरव और रोशनी बैठ गए।

“पापा! अब हम बड़ी गाड़ी लेंगे हा।“, यश ने कहा।

“हां! बेटा। लेंगे जल्दी।“, पीछे सब ठीक है या नही यह देखते हुए हिमेश ने कहा।

“अरे सब ठीक से बैठे है ना?”, इठाबाई चिल्लाई।

“हाव आक्का। सब ठीक से बैठ गए है।“, हिमेश ने दरवाजे से अपनी गर्दन बाहर निकालते हुए कहा।

“पूरा टिफिन फिनिश करना बच्चो समझे ना?”, उज्ज्वला ने कहा।

“हां। सब खत्म करना। अगर नहीं किया तो तुम्हारी मांए खत्म कर लेंगी शाम को।“, हिमेश ने मजाक में कहा।

सब बच्चे हंसने लगे। उज्ज्वला और जयश्री भी हंसने लगे।

और फिर कार अपने रास्ते पर निकल पड़ी।

थोड़ा आगे जाते ही अचानक से बच्चे अपना हाथ दिखाते हुए चिल्लाए, “बाय बाय दादाजी।“

श्रावण ने भी अपना हाथ हिलाया और बाय कहा। लेकिन शायद ही उसकी आवाज उनतक पोहोची होगी।

श्रावण उसी पेड़ के नीचे अकेला बैठा हुआ था जो कब्रस्तान के पास था। दगड़ू भी उसके पास में ही खड़ा था।



नीलम का सब काम हो चुका था। वह अपने कमरे में बैठकर ‘आशीष या श्राप’ नामक क्रिश्चियन किताब पढ़ रही थी। श्रीकांत अपने स्कूल गया था। जो पास में ही एक किलोमीटर की दूरी पर था।

अक्षदा, प्रज्ञा, दर्शन, गौरव और अभिषेक पहले ही राजेंद्र के कार में स्कूल गए थे। क्योंकि आठवी से लेकर दसवी कक्षा के विद्यार्थियों के सुबह सुबह एक्स्ट्रा लेक्चर होते थे।

मैरी अपने कमरे में दरवाजा बंद करके अकेले ही बैठी हुई थीं। उसने अपना नाश्ता कर लिया था। रोशनी उससे मिलने आई थी। लेकिन वह फिर से तुरंत निकल गई थी। क्योंकि उसे खेत में आज बोहोत काम था।

मैरी रात को ठीक से सोई नहीं थी। वह आवाजे जो उसे कभी कबार धीमी सुनाई देती थी वह कल रात से और भी गहराई से सुनाई देने लगी है।

वह उसे पुकार रही थी, “मैरीss मैरीss!!”

मैरी डरा हुआ महसूस कर रही थी। नहीं उसने आज बाइबल पढ़ा और नहीं वह धूप सेंकने बाहर गई। वह बस अपनी आंखे बंद कर रही थी और खोलकर यहां वहा देख रही थी।

अपनी सोच में डूबी मैरी को फिर अचानक से उसे कुछ सुनाई दिया।

“मैरी बेटाss। चलोss कुछ काssम करते है।“, एक औरत की आवाज आई। मैरी डर गई। क्योंकि आज पहली बार उसने कुछ और जादा शब्द सुने।

“कss कैसा काम? तुम मेरी नानी हो ना?”, डरते हुए मैरी ने धीमी आवाज में कहा।

“हांss! मुझ से डरो मत बेटा। मैं तुम्हे कुछ नही करूंगी। मैं तुम्हारी नानी ही हूं और मैं तुम्हे कभी छोड़कर नहीं जाऊंगी। मैं तुम्हारा खयाल रखूंगी।“, सुलेखा ने कहा।

मैरी को इतना तो एहसास हो रहा था की यह आवाज अब बाहर से नही बलकि उसके अंदर से ही आ रही थी। मानो जैसे वह आवाज उसकी आत्मा से जुड़ी हो।

अचानक से मैरी की आंखे पूरी तरह से बदल गई। उसका चेहरा साधारण से जादा गुस्से से भर गया। उसने अपने कमरे की खिड़की थोड़ी सी खोली और बाहर देखा। सुंदरा, सरला और लीलाबाई वही आंगन में बैठकर बाते कर रहे थे। इस तरफ अर्जुन, उत्तम अपने काम में लग चुके थे। शांताराम अपने घर की तरफ चला आ रहा था। यह सारा दृश्य अपनी नजरों में समाकर सुलेखा हंसने लगी। उसकी हंसी खौफ भरी और रोंगटे खड़े करने वाली थी। मानो जैसे नरक की धगधगती आग हो। अचानक से उसका चेहरा धीरे धीरे साधारण सा हो गया और वह अपने पूर्व स्थिती में आ गई।

“यह क्या हो रहा है? मैं ऐसा महसूस कर रही हूं जैसे वह मुझपर हावी हो रही है।“, मैरी ने खुद से ही डरते हुए कहा। वह बोहोत बड़े उलझन में पड़ गई थी। उसने अपनी आंखे बंद की और वह अपने बिस्तर पर फिर से लेट गई।

थोड़े ही पल के बाद वह फिर से अचानक से उठ गई। अब वह पूरी तरह से बदल गई थी। उसका चेहरा खुद का तो था लेकिन चेहरे के भाव उसके नही थे। अंदर ही अंदर संघर्ष करते करते मैरी थक चुकी थी। अब सुलेखा उसपर हांवी हो चुकी थी। वह उठी और घर के बाहर चली गई। वह अपने बंगले के पीछे वाले कुंए के पास गई। शांताराम का घर पास में ही था। शांताराम वही बाहर आंगन में खड़े खड़े अपने खेत कि तरफ देख रहा था। अचानक से उसकी नजर मैरी पर गई। मैरी कुंए में देख रही थी। कुंआ बोहोत ही पुराना और थोड़ा सा छोटा था लेकिन गंदे पानी से भरा हुआ। शांताराम मैरी की ओर चला आया और उसके पास खड़ा रहा। शांताराम और मैरी की कभी जादा बाते नही हुई थी और नहीं वह एक दूसरे को जादा जानते थे।

“कैसे हो मैडम?”, अपनी थकी आवाज में शांताराम ने कहा।

“मैं ठीक हूं।“, मैरी ने कहा। उसकी आवाज में हलका सा बदलाव था और उसकी आंखे पानी से भर गई थी। लेकिन वह आंसू आंखों में ही जमे हुए थे।

“आप कैसे हो?”, मैरी ने कहा।

“मैं भी ठीक हु।“, शांताराम ने कहा। “मैं आपको याद हूं?”

मैरी ने दो पल के लिए शांताराम की आंखों में गौर से देखा और कहा, “हां, आप मुझे याद हो। आपकी पत्नी का नाम सुंदरा है। है ना शांताराम चाचा?”, मैरी ने कहा। उसकी आवाज में अब और भी बदलाव आ गया था। शांताराम को यह बदलाव महसूस होने लगा था। अपने पत्नी की बात सुनते ही उसकी आंखे थोड़ी सी बड़ी हुई और वह थोड़ा सा डर गया।

“हां! वह मेरी पत्नी है।“, शांताराम ने कहा।

“मुझे याद है की वह मेरे मां के साथ ही रहती थीं। हर काम में उनकी मदद करती थी। मेरे साथ भी बचपन में वह खेला करती थी। मेरी मां के लिए वह बोहोत मायने रखती थी। वह जब मेरी मां के साथ होती थी तब मेरी मां बोहोत खुश रहती थी।“, मैरी ने कहा।

“अच्छा तो तुम्हे सब याद है।“, शांताराम ने कहा।

“हां। मैरी को शायद ही याद होगा लेकिन मुझे सब याद है, शांताराम चाचा।“, सुलेखा ने कहा।

शांताराम ने डरते हुए कहा, “कौ – कौन हो तुम?”

इतने वक्त से मैरी नही बलकी सुलेखा शांताराम से बाते कर रही थी।

“मैं वही हूं। जो तुम्हारे पत्नी की जान लेना चाहती थी।“, सुलेखा ने कहा।

“क्या तुम मैरी की मां सुमित्रा हो?”, शांताराम ने कहा।

“मैं मैरी की नानी हूं। मैं ही थी जो सुमित्रा के अंदर थी। मैं ही थी जिस ने तुम्हारे पत्नी की जान लेने की कोशिश की थी। तुम्हे वो सबकुछ याद तो होगा है ना?”, सुलेखा ने कहा।

शांताराम बोहोत ही डर गया था। उसके हाथ से उसकी लाठी छूट गई।

सुलेखा की आवाज में अब क्रोध भरा बदलाव आ गया था। उसके आंखों की नसे लाल होने लगी थी। आसपास के वातावरण में अस्वस्थता फैल रही थी। उसका एहसास शांताराम को होने लगा था। इस सुबह की रोशनी में भी अंधेरे का एहसास उसे होने लगा था।

सुलेखा ने नीचे झुककर लाठी उठाई और शांताराम के हाथ में थमा दी। शांताराम वही खड़ा मैरी को देख रहा था।

“हमे माफ कर दो। हमे छोड़ दो। जो कुछ भी हुआ वो बस एक हादसा था।“, शांताराम ने कहा। और वह धीरे धीरे पीछे चलने लगा।

“अच्छा! तो वो एक हादसा था? वह सारी बाते जो तुमने की वह सिर्फ एक हादसा थी?”, सुलेखा ने कहा।

“मैं मानता हूं वो सब गलत हुआ। लेकिन हमे माफ कर दो।“, शांताराम ने डरते हुए कहा।

“माफी तो नही दे सकती। लेकिन एक रहम जरूर कर सकती हूं।“, सुलेखा ने कहा।

“क्या?”, शांताराम ने कहा।

“सुकून की मौत दे सकती हूं।“, सुलेखा ने मुस्कुराते हुए कहा।

“मैं – मैं सबको बताऊंगा।“, शांताराम ने कहा।

“क्या तुम सच में यह सारी बाते सबको बताओगे शांताराम? क्या यह संभव है? कैसे बताओगे? भागकर जाओगे या चिल्लाओगे?”, सुलेखा ने कहा।

शांताराम बोहोत ही डर गया था। वह नीचे गिर गया।

उधर से सुंदरा ने देखा। वह चिल्लाई, “क्या हुआ?” और उनकी ओर आने लगी।

यह देखकर सुलेखा भी चिल्लाई, “वह अचानक से गिर गए। पता नही क्या हुआ? जल्दी से यहां आओ।“

“बचाओ!”, शांताराम हलकी आवाज में चिल्लाया।

उधर से अर्जुन चिल्लाया, “मामा!” और वह भी उनकी ओर दौड़ने लगा। उसके पीछे पीछे उत्तम भी भागने लगा।

सुलेखा उसके आंखों में देख रही थी। शांताराम भी उसके आंखों में देखा रहा था।

सुलेखा ने कहा, “नरक की आत्माएं। तुम्हारे लिए तोहफा है।“

और उसने एक चुटकी बजाईं।

उसी वक्त शांताराम ने अपनी छाती पर जोर से हाथ रखा। जैसे उसके दिल पर किसी ने कब्जा कर लिया हो। अब उसकी आवाज ही निकलना बंद हो गई। वह झटपटा ने लगा। क्योंकि अब उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी। वह और जोर से तड़पने लगा। सुंदरा भी उसके पास आ गई। उधर से उत्तम और अर्जुन भी उसके पास आए।

शांताराम को ऐसा देखकर अर्जुन चिल्लाया, “विलास!! जल्दी से यहां आओ।“

विलास और रोशनी अपने खेत में थे। उन्होंने सुना और वह तेजी से उनकी ओर दौड़ने लगे। अर्जुन की यह आवाज सुनते ही लता, सारिका और इधर से इठाबाई, लताबाई, दादाभाऊ, बापू, सरला, उज्ज्वला और जयश्री भी दौड़ते हुए आए। नीलम भी बंगले से बाहर आई।

शांताराम को अब अर्जुन ने अपनी गोद में पकड़ लिया था। लेकिन शांताराम वही लेटे लेटे तड़फड़ाते हुए मैरी की ओर ही देख रहा था। उसकी आंखों में बोहोत डर बैठ गया था। वह तड़फ रहा था। लंबी सांस लेने के लिए संघर्ष कर रहा था। उसके मुंह से कोई भी शब्द नही निकल पा रहा था। वह ऐसा कुछ भी नही कर पा रहा था जिस से वो यह बता सके की यह सब सुलेखा ने किया है।

कब्रस्तान की ओर से रास्ते पर श्रावण चलते हुए आ रहा था। उसने भीड़ देखी और वह और भी तेजी से चलने लगा।

“विलास जल्दी से अपनी गाड़ी लो।“, अर्जुन ने डरते हुए कहा। विलास दौड़ते हुए गया।

सब वहा इकट्ठा हो गए थे। सब लोग बोहोत डर गए थे। सुंदरा तो शांताराम की यह हालत देखकर रोने लग गई थी। श्रावण भी वहा पोहोंच गया। वह शांताराम को ऐसे देखकर डर गया और उसने कहा, “क्या हुआ इसे? क्या हुआ इसे?” और फिर उसने मैरी की ओर देखा। वह अब सुलेखा नही बलकि मैरी थी। और वह भी बोहोत डरी हुई थी।

विलास गाड़ी लेकर आया। अर्जुन ने और उत्तम ने मिलकर उसे गाड़ी पर बैठाया। शांताराम अब सांस लेने के लिए और भी झटपटा रहा था। अर्जुन पीछे बैठ गया और उसने कहा, “चलो जल्दी विलास अस्पताल।“

वह जाने लगे। इधर सुंदरा जोर जोर से रोने लगी।

उत्तम ने कहा, “सबको फोन करो।“

सब रोने लगे और वहा से चले गए। श्रावण अभी भी वही खड़ा रास्ते की तरफ देख रहा था। मैरी उसके पीछे ही खड़ी थी। मैरी को शांताराम और सुलेखा के बीच क्या चल रहा था थोड़ा थोड़ा महसूस हो रहा था। सुलेखा के अंदर से वो यह सब देख रही थी। उसकी आंखों में आसूं थे और उसके आंखों के सामने सारा चित्र घूम रहा था।

श्रावण ने उसकी ओर देखा और कहा, “यह कैसे हुआ ऐसे अचानक?”

मैरी ने रोते हुए कहा, “मैं और चाचा पुराने दिनों के बारे में बात कर रहे थे। लेकिन अचानक से उनके छाती में दर्द होने लगा और वह नीचे गिर गए।“ और मैरी वहा से सुंदरा के घर की ओर चली गई।

श्रावण मैरी की ओर ही देख रहा था। उसको मैरी की बातों मे शंका महसूस हो रही थी। की ऐसे कैसे अचानक से उनके छाती में दुखने लगा।

सारे बस्ती वाले सुंदरा के घर के बाहर ही खड़े थे। वह रो रही थीं। श्रावण भी उनकी ओर चल पड़ा।

अर्जुन अपने फोन पर लगा हुआ था। उसने सुनील को फोन किया। उज्ज्वला और जयश्री राजेंद्र और हिमेश को कॉल कर रही थी। लता और सारिका पेत्रस और आनंद को फोन कर रही थी।

थोड़ी देर के बाद विलास का अर्जुन को फोन आया। फोन उठाते ही वह रोने लगा और उसने कहा, “वह उसे लेकर आ रहे हैं। वे अब नही रहे।“

यह सुनते ही सुंदरा और जोर से रोने लगी और बाकी सारे भी रोने लगे। मैरी और नीलम भी वही खड़े थे। उन्हे भी बोहोत दुख हो रहा था।

देखते ही देखते हिमेश, राजेंद्र और विलास भी आ गए। उनके पीछे छोटी एंबुलेंस भी आई। उसमे से शांताराम चाचा कि लाश को नीचे उतारा। सब बोहोत रोने लगे। थोड़े वक्त के बाद डेविड भी वहा आया। वह भी बोहोत दुख में था। बस्ती वालों के कोई जादा रिश्तेदार नही थे। गांव के कुछ लोग भी वहा आए हुए थे। जिसमे सरपंच भी थे। श्रीकांत भी आया। स्कूल से बच्चों को लाया गया। सब अंतिम संस्कार की तैयारी में लगे हुए थे। शांताराम की ४ लड़कियां थी। सब उनके लिए रुके हुए थे। थोड़ा सा समय बीत गया। उसकी चार लड़कियां जिनकी भी उम्र हो चुकी थी वो भी आ गई थी। अब शाम होने पर थी।

कब्रस्तान में खड्डा खोद दिया था। सारी विधियां पूरी हो चुकी थीं। सब इकठ्ठा हुए थे। शांताराम को पेटी में बंद किया और पेटी को खड्डे में डाल दिया। अब बस्ती के सारे लोग एक एक करके मिट्टी डाल रहे थे। आखिर में विलास ने पूरी मिट्टी डाल दी। गांव के कुछ लोग पहले ही चले गए थे। लेकिन जो रुके हुए थे वे भी अपने घर चले गए। चर्च के भी कुछ लोग उनके इस शोक में उपस्थित थे। वे भी अपने अपने घर चले गए। बस्ती के लोग भी अपने घर चले गए। डेविड ने और उसकी पत्नी ने सबको दिलासा दिया।

अब कब्रस्तान में एक और क्रॉस लग गया।

रात के समय अक्षदा और प्रज्ञा अपने कमरे में ही बैठे हुए थे। वे दोनो भी बोहोत दुःख में थी। लेकिन अक्षदा दुःख से जादा चिंता में थी। वह अब भी मैरी के बारे में ही सोच रही थी। जिस साए को उसने पहले महसूस किया था उस साए को वह और भी जादा आसानी से महसूस कर रही थी। जैसे की वह साया और ताकदवान हुआ हो।

“रानी तुमने आज सुबह मुझे बताया था अपने रात के सपने के बारे में है ना? की तुमने किसी को मरते हुए देखा था।“, प्रज्ञा ने कहा।

“हां। वो सपना देखकर मैं भी बोहोत डर गई थी।“, अक्षदा ने कहा।

“क्या उस सपने का इसके साथ कोई संबंध है?”, प्रज्ञा ने कहा।

“पता नही पनू। लेकिन मुझे तो लगता है की कोई तो वास्ता है। वैसे तो अक्सर मुझे बुरे और डरावने सपने आते रहते है। लेकिन मैं कभी कभी उन्हे समझ नही पाती। लगता है मुझे प्रेयर में अपना समय बिताना पड़ेगा और फादर से बात करनी पड़ेगी। ताकि मेरे सपने और भी साफ हो और मैं उन्हें समझ पाऊं।“, अक्षदा ने कहा।

“हां। मुझे भी यही लगता है।“, प्रज्ञा ने कहा।

“अच्छा तो अब सो जाते है। शुभ रात्रि।“, अक्षदा ने कहा। और वह अपने विचारों में फिर से डूब गई। उसका ध्यान भी नही था की प्रज्ञा ने भी उसे शुभ रात्रि कहा।

आज बस्ती कि रात बोहोत ही सदमे भरी थी।


By Kishor Ramchandra Danake




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