By Anand Gupta
कभी वक़्त मिले तो चले आना
दिल्ली घुमाएंगे तुम्हे
नई हो पुरानी हो
पूरी कहानी बतायेंगे तुम्हे
वो फ़ैज़ नहर चांदनी चौक की
वो कैफ तेरी आंखों का
वो चीस केक Maxim का
मेरे दिल से लिपटा तेरा ग़ालिबां
रक्खा है आज भी उम्मीदों की सेज़ पर
तुम्हारे इंतजार में, तुम्हारे प्यार में
तो आओ कभी
फ़िर करूं सज़दे तुम्हारे
नाम सारे
सिरी से शाज़हनाबाद तक,
गली गली, शहर मोहल्ले
सारे के सारे, नाम तुम्हारे
ग़ालिब की गलियां, मीर की खलिश
दाग़ का उजाला और मेरा दिल
सब हैं तुम्हारे
ये ग़ज़ल वो नज़्म वो अधूरे अशार
ये अंधेरे ये उजाले, ये दिन ये रात
क़ुतुब मीनार, मंजनू का टीला
लोधी गाडेंन, हौज़ खास
हुमायूँ, रहीम, सफ़दर, सूफ़ी, सहाफी
वक़्त की कैद से रोज़ झांकती ये सदियां
सब तुम्हारे हैं आशां
मुझसे नहीं, न सही
आओ इनसे मिलो कभी दिल्ली में
जिंदा रहने को ज़रूरी है इश्क़ की रनाइयां.
By Anand Gupta
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