By Virendra Kumar
बड़ी मस्ती में चल रहा था मैं ये सोच कर के,
मेरे पीछे मेरे अपनों की एक कतार चल रही,
कतार तो लगी थी मगर पक्की राह तक ही,
कांटे दिखते ही कतार मे घुमाव बेहद बार हो गए,
जो विश्वास किया था मैंने वो सब बेकार हो गए,
कुछ एक ही बचे थे मेरे लिए साथ चलने को,
बाकी सब रास्ता बदल के फरार हो गए,
कठिन रास्ता था पर मैं रुका नहीं,
जो साथ थे उन्हीं के कंधे का सहारा लिया,
व्यक्त ने बहुत झुकाना चाहा मेरे हौसले को,
पर हौसला इतना बुलंद था कि मैं झुका नहीं,
जब खत्म हुआ कांटों भरा रास्ता कुछ वक्त के बाद,
मैं फिरसे आने लगा बाकी लोगों को याद,
वक्त ने करवट ली और फूल भरा किनारा आ गया,
मुझे लगा कि सामने से वक्त अब हमारा आ गया,
रास्ता बदलने वालों को फिरसे मेरे लिये प्यार आया,
सूख चुके बगीचे मे जैसे फिरसे बहार आया,
कुछ वक्त पहले तो कोई नहीं था साथ खड़ा,
अब स्वागत करने को सामने से पूरा संसार आया,
खुशी मे शरीक होने को फिर कतार बड़े हो गए,
जो दो वक्त का निवाला ना पूछते थे गुजरे वक्त में
वो हर मुश्किल मे मेरा साथ देने को खड़े हो गए,
चेहरे पर मुस्कान पर मन मे कुछ फीका फीका था,
समझ मे आता मुझको उनका हर तरीका था,
उनका साथ तो बस दिखाने को ही बड़ा था,
दिल तो खुश उनके लिए था जो कांटों मे भी साथ खड़ा था,
ये कहानी मेरी नहीं हम सबकी है,
बस कुछ अपनों को छोड़ के ये सारी दुनिया मतलब की है l
By Virendra Kumar
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