By Jagrati Chaurasiya
दरीचों से कभी खुशगवार मौसम देखा हैं क्या।
बिन उस गली में जाए उसका मक़ान देखा हैं क्या।
मैंने तो तुम्हें कई दफ़ा देखा हैं गली में मेरी।
तुमने मुझे ख़्वाबों में देखा हैं क्या।
कितना सोचते हैं, समझते हैं फिर करते हैं इश्क़ आजकल लोग।
वो पुराने जमाने वाला इश्क़ आपने देखा हैं क्या।
कहते हैं फिर मिलेगे पर कभी ऐसा होता हैं क्या।
जिनको फिर मिलना होता हैं उनको कभी ख़ुद बिछड़ते देखा हैं क्या।
यू ही आंखें मूंदकर इश्क़ करना बेमतलब हैं शायद।
आपने पहले उस शख़्स को समझकर देखा हैं क्या।
सब समझाते हैं बिन परखे इश्क़ करना बेवकूफ़ी हैं।
पर आपने किसी को सोच समझकर इश्क़ करते देखा हैं क्या।
By Jagrati Chaurasiya
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