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द्रौपदी

By Gitanjali Devi


यज्ञ से जन्मी यज्ञसेनी

द्रुपद पुत्री द्रौपदी 

भूमि की आत्मा पांचाली 

पर जब विपदा में गिरी ,क्या उससे बचने आया कोई

धृष्टद्युम्मा के साथ भेट में मिली

द्रुपद के लिए जिम्मेदारी बनी

पांच पतियों को पाया,शिव से मिला वरदान निभाया 

अपने अहंकार क्रोध  और प्रतिशोद में आकर 

विश्व का सबसे बड़ा युद्ध रचाया

अपने प्रेम को हर स्तर पर गिराया 

जो न करना था प्रतिशोद की अग्नि ने वह भी कराया

पर वह दुःख कोन समझता 

वह प्रतिशोद की अग्नि में जलती याज्ञसेनी

भरे सभा में लज्जित होती वह अबला नारी

जब पतियो ने दाव पे लगाया उससे 

पासे के खेल में गवाया उससे 

मन उसका भी तोह हज़ार टुकड़ो में टुटा होगा

तेरह सालो तक अपना केश नहीं धोया उसने भी तो सहा होगा

कृष्णा की सखी थी वह भव्य अग्नि से जन्मी थी वह 

युद्ध में उसने भी तो साहा था

क्या यह युद्ध होना इतना जरूरी था 

युद्ध में क्या कुछ न गवाया उसने 

पिता भ्राता पुत्र एक युद्ध में क्या न खोया उसने

पति बचे पर प्रेम गवाया

युद्ध ने विश्व पर ध्वंश रचाया

सब कुछ अपने नेत्रों के सामने देखकर भी 

कुछ न कर सकी वह 

कृष्णा सखी द्रौपदी हाथ पर हाथ धरी रह गयी वह


By Gitanjali Devi

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