By Kamakshi Aggarwal
आग रूपी जीवन था उसका,
यज्ञ की अग्नि से प्रकट हुई,
द्रौपदी था नाम उसका।
काँटो भरा था जीवन उसका,
न सखियाँ न बाबुल का दुलार।
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर ने जीता उसे,
पर घट गया उसका सम्मान।
कुंती के एक वचन ने, कर दिया द्रोपदी का अपमान,
एक ब्रहम वाक्य के कारण, पाँचो में बंट गई वो ।
फिर कुछ हीं श्रण में द्रुपद कन्या को, पांचाली का नाम मिला ।
फिर एक दिन,
धर्मराज युधिष्टिर मर्यादा सीमा के पार गए,
अर्धम में कुछ ऐसे उलझे,
कि अपनी पत्नी को ही हार गए।
न मर्यादा समझी, न ही समझा संस्कार,
दुर्योधन ने जीती हुई दासी पर,
बस अपना ही समझा अधिकार। लज्जित सभा थी सन्न जब,
दुशासन को पांचाली के वस्त्र हरण का आदेश हुआ।
सभा जनो से रोती द्रोपदी, एक प्रश्न थी पूछ रही,
क्यो यह संसार देखना चाहता है मेरा विकराल स्वरूप,
क्या पांडवो को स्वीकार करना,
ही थी मेरी सबसे बड़ी भूल?
क्यो रही नही करुणा भी शेष,
क्यों इतनी हिंसक हो गई।
क्या समरवीरों की सभा आज,
सारी नपुंसक हो गई ?
आँसुओ में बह गया वो,
जो पांचाली ने श्रृंगार किया।
यह सम्मानित नहीं, यह शापित है,
ऐसा करण ने भी हुंकार किया।
फिर उसने गोविंद को पुकारा,
एक चीर का ऋण था उसपर,
सखी की लाज बचाकर,
उसे भी गोविंद ने उतारा ।
बोली कुंठित द्रुपद कन्या,
आज विवश पर न सोचना,
कि तुम्हे छोड़ देंगे ।
अब खुले रहेंगे केश मेरे,
अब पांडव मेरा प्रतिशोध लेगें।
फिर प्रतिज्ञा ली भीम नें,
दुशासन की छाती चीर दूँगा।
उसी के रक्त से पांचाली,
तुम्हारे केश सींच दूंगा ।
इस घटना ने महाप्रलय का सृजन किया।
धर-थर काँपी वसुंधरा,
जब तक महाभारत समाप्त हुआ।
यह केवल त्रेता- द्वापर की बात नहीं,
यह किरदार आज भी जिंदा है।
है द्रोपदी आज की शोषित सी,
और पांडव उसके शर्मिंदा है ।।
आज भी कुछ लोग है,
पांडवो के किरदार में,
सब बैठे है द्रोपदी के,
अपमानित होने के इंतजार में।
आज की द्रोपदी को समझना होगा,
कि कलयुग में न कृष्ण आएंगें,
उसे स्वयं ही कृष्ण बनना होगा।
वहीं शक्ति हैं,
उसे शक्ति का संचार करना होगा,
अपने ही हाथो से,
दुशासन का संहार करना होगा।
By Kamakshi Aggarwal
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