By Prabhneet Singh Ahuja
धुन्धला सा शहर है, हवा में नमी है,
थेरा सा समा है, बस तेरी कमी है।
सुरीली सी हवा है,
पत्तौं में रंग नहीं,
मरते पेड़ का ढाँचा हू,
तू जो गाया नहीं।
खामोशी तेरी जितना बोल रही,
उतना तो तू भी कभी बोला नहीं।
By Prabhneet Singh Ahuja
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