By Archana S Singh
जब भी फ़लक पर माहताब नज़र आता है
मुझे मेरा एक अधूरा ख़्वाब नज़र आता है
कुछ सवालों की फेहरिस्त नज़र आती है
एक ख़ामोशी भरा जवाब नज़र आता है
सफ़र-ए-ज़िंदगी के इस कश्मकश में
उलझा हुआ एक इंकलाब नज़र आता है
सर्द सी पड़ी इन दिल की धड़कनों में
जलता हुआ आफ़ताब नज़र आता है
नज़र फेर लेते हैं फ़लक से फिर भी
अश्क़ों का क्यों सैलाब नज़र आता है..!
By Archana S Singh
Bahut sundar
शब्दों की इस माला से तीव्र हो गई गति हृदय की,
इनमें मुझे जज़्बातों का एक सैलाब नज़र आता है॥