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नया साल

Updated: Jan 18




By Harsh Raj


सर्द हवाएं और चांदनी रात,

क्या इससे भी खूबसूरत होगी ज़िंदगी?

ज़ख्म की चादर में लिपटे जो रहोगे तुम,

तो कैसे टूटेगी अज़ीयत से बंदगी?


निकल आओ अब, ढल गई ग़म की शाम,

आबरू चांद की लहलहा रही है बेशुमार।

शब-ए-जश्न का आगाज़ अब होने लगा,

बिन शराब ही चढ़ रहा है खुमार।


कब तक ग़फ़लत के अश्क बहाओगे?

कब तक करते रहोगे दिल को बेकरार?

जिसे जाना था, वो जा चुका है,

अब खत्म कर दो वफ़ा का इकरार।


देखो, नया साल आने को है,

नए तोहफ़े वो साथ लाने को है।

ख़ातिरदारी तबियत से हो उसकी,

खुशियों से रूह खिलखिलाने को है।


अबकी न हो कोई खता हमसे ऐसी,

जिससे किसी की बददुआ लगे हमें।

यूं तो खुदा पर भरोसा नहीं रहा,

अपने ज़मीर से डर अब भी लगता है हमें।


होश रहे और बेहोशी में कम ही रहा करें,

जो कर गए हैं पहले, वैसी अब न कोई खता करें।

और सारे गिले-शिकवे भुलाकर हम,

नए साल में रोज़ खुलकर हंसा करें।


By Harsh Raj




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