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नहीं कर पाती

Updated: Sep 16, 2023

By Falguni Saini



कभी नहीं कर पाती,

बस कर ही नहीं पाती।

सोचती हूं कि थोड़ा साहस और कर लूं,

अपने लिए नहीं, तो अपनों के लिए ही कर लूं।

पर उलझनों से सुलझ ही नहीं पाती।

किसी और से क्या कहूं जब खुदको ही

नहीं समझा पाती।

बड़े लोग, बड़ी जिम्मेदारियां

बड़े सपनों के लिए बड़े त्याग,

मगर उन छोटी खुशियों में भी तो बड़ा सुख है।

जहां हूं वहां से इतना लगाव हो गया है शायद कि

नए मंज़र खोजने को बस्ता समेट ही नहीं पाती।




पर फिर भी कुछ कमी लगती है।

न कर पाने की वजह खलती है।

रास्ते तो कई अनजाने हैं,

मगर किसके पीछे शह है और किसके मात

इनके जवाब किसने जाने हैं?

भय से लड़ते चलना तो होगा

पत्थर हों या फूल, गुजरना तो होगा

तभी तो पहुचेंगे वहां

जहां सबका कुछ तो मतलब होगा।

जहां सबके मकसद पूरे होंगें

और जो न हुए तो,

कमसे काम कुछ खास तजुरबे होंगें।


By Falguni Saini




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ਜੇ

2 Comments

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Unknown member
Sep 16, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

Courageous writing!!

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Krish
Krish
Sep 15, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

Keep it up

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