By Aarti Gupta
वो कहते हैं ना जाने कैसी हो तुम ,
हमारे घरों में लोग ऐसे नही होते ,
ना जाने कब सुधरेगी शैली तुम्हारी ,
इस तरह के सलीके हमारे घर नहीं होते !
कितनी अल्हड थी मैं , मेरे पापा की परी थी,
जहां मैं भी न्नही थी मेरी गलतियां भी न्नही थी ,
लाल जोड़े ने एक पल में मेरा कद बदल दिया,
वहां मैं भी बड़ी हो गई,मेरी हर गलती बड़ी हो गयी !
मेरे औदे की औकात मुझे समझ में नहीं आयी,
वो हैं ऊँचे घर के तो मैं कहाँ से परायी ,
उस औदे के सम्मान मे हर दिन अवहेलना थी ,
वो उनके रस्मो रिवाज़ थे ज़िन्हे मैं निभाती आई ,
कितने प्रयतन कितने प्रायास कितनी हैं थकान ,
उससे भी कठिन है उनकी सारहाना और मुस्कान ,
हर दिन कट रहा है अपनी पेहचान की लडाई में,
कुछ एहसास होते हैं और कुछ अब नहीं होते,
पर वो कहते हैं ना जाने कैसी हो तुम ,
हमारे घर के लोग एसे नहीं होते !!!!
By Aarti Gupta
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