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नानी की हँसी

By Neha

नानी मेरी बूढ़ी थी,

कुछ याद नहीं उनके बारे में,

बस यह कि,

वो बूढ़ी थी।


हाँ, हँसती थी तो,

बूढ़ों जैसे हँसती थी,

वो ढला पेट, दुखी चेहरे सा,

दौड़ता था फूटे गुब्बारे सा।


फिर तूफान सा आजाता था,

मानो पूरे बिस्तर पर,

फिर मुँह से हवा निकलती थी,

बिना दंतुरित रुकावट व डर।


नानी मेरी बूढ़ी थी,

बूढ़ी इतनी की माँ भी मेरी,

भूल गयी थी अपनी माँ को,

याद रही तो बस नानी मेरी।


फिर भी उसके मर जाने पर,

सबने एक ही बात कही,

ये जो बुढ़िया आज मरी है,

मरी चुकी मौत के पहले से ही।


By Neha

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