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नुकीला हिस्सा

By Kishor Ramchandra Danake


सोमवार रात का वक्त था। दोपहर को फादर अपने परिवार के साथ आज बस्ती के लोगों से मिलने आए हुए थे। चर्च के कुछ सदस्य भी आज बस्ती के लोगों के दुःख शामिल होने के लिए उपस्थित थे। बस्ती पर बच्चों का नाही कोई शोर था और नाहीं कोई आवाज। श्रीकांत, नीलम, अक्षदा और प्रज्ञा भी अपने कमरे में बैठे हुए थे। मैरी आंगन में आग जलाकर अकेले ही कुर्सी पर बैठी हुई थी। अक्षदा ऊपर खिड़की से मैरी को देख रही थी। क्योंकि कल रात उसने फिर से एक दृश्य देखा था। एक लकड़ी का टुकड़ा और उसपर से खून बह रहा था। इसलिए उसे ठीक से नींद भी नहीं आ रही थी। लेकिन थोड़ी देर के बाद वह अपने बेड पर जाकर सो गई। प्रज्ञा तो आज थोड़ी जल्दी ही सो गई थी। श्रावण अपने घर के बाहर आग जलाकर खड़ा था। उत्तम और अर्जुन भी उसके साथ ही बैठे हुए थे। बस्ती के बाकी सारे लोग सो गए थे। कुछ समय के बाद उत्तम और अर्जुन भी अपने घर में चले गए। अब उस तरफ श्रावण बैठा हुआ था और इस तरफ मैरी। मैरी श्रावण को देख रही थी और श्रावण मैरी को।

मैरी के सामने आग बुझने लगी थी। उसने उसके पास पड़ी बड़ी लकड़ियां उसमे डाल दी और अपनी आग को बढ़ाया। यह लकड़ियां थोड़ी सी मोटी थी। अब उन लकड़ियों ने धीरे धीरे आग पकड़ ली। उस आग की रोशनी में श्रावण मैरी का धुंधला सा चेहरा देख पा रहा था।

सुलेखा उसपर हाँवी हो चुकी थी। उसने आग थोड़ी सी बढ़ाई और फिर उसे तेजी तेजी से अपने पैरों से बुझाने लगी। वह जोर जोर से अपने पैरों को आग में मारने लगी और आग को बुझाने लगी। उसके अंदर एक अलग सी ही ताकद समायी हुई थी। श्रावण उधर से हैरानियत से उसकी तरफ ही देख रहा था। सुलेखा के सामने की आग अब पूरी तरह से बुझ गई और उन सारी लकड़ियों के कोयले से धुंवा निकलने लगा और आसपास फैलने लगा। सुलेखा ने देखा और वह धीरे से हंसने लगी। उसने अपने हाथ उठाए और कुछ मंत्रों को धीमी आवाज में पढ़ा। अब वह घूमने लगी और उसने अपने हाथ बंगले की ओर किए। उसके हाथ की दिशा की ओर थोड़ा सा धुंवा बंगले के अंदर चला गया। वह मुस्कुराते हुए श्रावण कि ओर चलने लगी। फिर उसने अपने हाथों को बांई ओर किया। धुंवा अब बांई ओर के घरों की ओर बढ़ने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे यह कोई आत्माएं हो जो हवा में तैर रही थी। श्रावण यह देखकर डर गया। अचानक से उस धुंवे से अक्षदा जाग गई। उसने महसूस किया की यह कोई साधारण धुवां नही बलकि उसमें शैतानी आत्माएं है। अक्षदा ने खिड़की से देखा लेकिन उसे वहा मैरी दिखाई नहीं दी। उसने थोड़ी आगे नजर डाली तो उसे दिखाई दिया की मैरी विलास के घर की ओर बढ़ रही है।

श्रावण यह सोच रहा था की आखिर ये क्या कर रही है और कैसे कर रही है।

फिर सुलेखा ने अपना हाथ दांई ओर किया तो धुंआ अब दाई ओर के घरों में फैल गया। श्रावण यह देखकर बस हैरान रह गया की सारे बस्ती में और घरों में बस धूंवा ही धूंवा फैला हुआ है। लेकिन यह धुंवा उसके आसपास से गुजर रहा था। और फिर सुलेखा उसके सामने खड़ी हुई।

“यह क्या हो रहा है? तुम क्या कर रही हो?”, श्रावण ने कहा।

“डरो मत किसी को कुछ नही होगा। अब तो सारे बस गहरी नींद में चले जायेंगे। यह धुंवा सारी बस्ती में फैल गया है। अब कितना भी आवाज हो कोई नही उठेगा।“, सुलेखा ने कहा। और उसकी खौफ भरी हसी निकली।

“कौन हो तुम? क्या तुम सुमित्रा हो?”, श्रावण ने डरते हुए कहा।

“नहीं। मैं सुमित्रा की मां हूं।“, सुलेखा ने कहा।

“उसकी मां? क्या तुम उसके मां की आत्मा हो?”, श्रावण ने कहा।

“हां! मैं कैद थी। और मैं अब वापस आ गई हूं। क्या तुमने मुद्रुखा और सुलेखा का नाम सुना है?”, सुलेखा ने कहा।

“हां। हमने सुना है। वो तो एक तांत्रिक की बेटियां है। जादूटोने की बोहोत सी विद्यावों में निपुण। लेकिन उनका क्या?”, श्रावण ने पूछा।

सुलेखा ने मुस्कुराकर कहा, “मैं वही सुलेखा हूं।“

श्रावण की आंखे अब बड़ी हो गई और वह डर गया।

“तुम तो मर गई थी। हमने सुना था। तो तुम कैसे वापस आ गई।“, श्रावण ने कहा।

“मैंने एक दरवाजा बनाया था। नरक का दरवाजा। उसी के ज़रिए मैं फिर से लौट आई।“, सुलेखा ने कहा।

श्रावण और भी जादा डर गया। उसने कहा, “तुम्हारी बहन ने भी ऐसा एक दरवाजा बनाया था। हमने उसके बारे में सुना था। हममें से कुछ लोगों को लगा यह सब अफवाएं है। तुम तो बोहोत पहले ही वो पहाड़ी छोड़कर चली गई थी है ना। हमने इसके बारे में सुना था। हमारे ही कबीले के एक व्यक्ति के साथ तुमने शादी की थी।“

“तुम तो काफी कुछ जानते थे हमारे बारे में।“, सुलेखा ने कहा।

“हमारे कबीले में सब तुम्हारी मां को और तुम्हे जानते है। हमे माफ कर दो। हमने जो भी किया उसके लिए हमे बक्श दो। चाहो तो मेरे साथ तुम कुछ भी करो। लेकिन हमारे परिवारों को छोड़ दो। मैं तुमसे भीक मांगता हूं।“, श्रावण ने कहा।



रोशनी भी अपने कमरे से यह सब देख रही थी। धुंआ उनके घर में भी था लेकिन विलास और रोशनी पर उसका कोई असर नहीं हुआ था। रोशनी विलास को उठाने वाली थी लेकिन उसे लगा की थोड़ा रुक जाते है। शायद मैरी और श्रावण बस बाते कर रहे होगे। फिर रोशनी वही दरवाजे पर खड़ी रही और देखने लगी। उसे उनकी आवाजे सुनाई नही दे रही थी क्योंकि बीच में सुनील और उत्तम के घर थे। वे दोनो आनंद के घर के आंगन में खड़े थे। जहां उनका ट्रैक्टर खड़ा था।

सुलेखा ने कहा, “मैं तुम्हे नही छोडूंगी। तुमने मेरी बेटी को बेरहमी से मार दिया। मैं अपनी बेटी से बोहोत प्यार करती थी। मैं उसके अंदर ही थी जब तुमने और तुम्हारे भाइयों ने उसे उसके हाथ और पैर पकड़कर उठाया था। मैं उसके अंदर ही थी जब तुमने कहा था की ये तो एक चुड़ैल है। ये अगर यहां रहेगी तो हमे एक एक करके खत्म कर देगी। मैं उसके अंदर ही थी जब तुम मेरी बेटी को बंगले के पीछे ले गए और उसे उस लकड़ी के नुकीले हिस्से पर गिरा दिया।“ अब सुलेखा के आंखों में आंसू आने लगे थे। उसकी आवाज में दर्द के साथ गुस्सा भी था।

सुलेखा ने आगे कहा, “मैं उसके अंदर ही थी और मैं उसके दर्द को महसूस कर रही थी जब वो तड़प रही थी।“ और उसने अपना एक कदम श्रावण की ओर बढ़ाया। “वो मैं थी जिसने मरने से पहले तुम्हारे भाई दगड़ू को शाप दिया था। हां मैं ही वो चुड़ैल थी। मेरी बेटी सुमित्रा नही।“ वो अब आगे आगे बढ़ने लगी। श्रावण पीछे पीछे चलने लगा। फिर सुलेखा रुक गई।

“जब मेरी बेटी मर गई मैं फिर से दरवाजे के अंदर चली गई और दरवाजा बंद हो गया। उसके बाद मेरी पोती मैरी ने फिर से दरवाजा खोला।“, सुलेखा ने कहा। “हां वो मैं ही थी जिसने शांताराम को मारा। मैं ही थी जिसने दगड़ू को कुंवे में गिराया था। हां वो मैं ही थी जिसने इठाबाई को मारा। उर्मिला और कमला को भी मारने वाली मैं ही थी। तुम्हारी बहन सुंदरा को मारने की कोशिश भी मैने ही की थी। और आज मैं तुम्हे भी मार दूंगी।“

श्रावण रोने लगा। उसने हाथ जोड़कर कहा, “मुझे मार दो लेकिन हमारे बच्चों को छोड़ दो।“

सुलेखा अब हंसने लगी। उधर से अक्षदा भी यह देख रही थी। हर तरफ बस अंधेरा था। अक्षदा अब आंगन में आकर खड़ी थी क्योंकि उसे दरवाजे से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। रोशनी भी यह देखकर चौंक गई थी।

सुलेखा बंगले की तरफ मुड़ी और चलने लगी। दो कदम चलने पर उसने कहा, “नरक के लिए और एक तोहफा।“

अचानक से श्रावण का पैर फिसल गया और वह पीछे उसी लकड़ी पे गिर गया जो वहा बोहोत दिनों से पड़ी थी। जिसके ऊपर से एक नुकीला हिस्सा बाहर आया हुआ था। वो नुकीला हिस्सा श्रावण के पेट में घुस गया। और उसने सुलेखा की ओर देखते हुए अपना दम तोड दिया। उधर से रोशनी और अक्षदा डर गई।


अपनी आखरी सांस छोड़ते वक्त श्रावण की आंखे आसुओं से भरी हुई थी।

सुलेखा मुस्कुराते हुए अपने बंगले की ओर चल रही थी। यह देखकर अक्षदा बंगले के अंदर अपने कमरे में चली गई। सुलेखा रोशनी के घर के पास पहुंची। खुले दरवाजे के अंदर सुलेखा ने देखा। रोशनी और विलास सो रहे थे। रोशनी घर में सोने का नाटक कर रही थी। फिर सुलेखा अपने बंगले के पास आई। ऊपर से अक्षदा ने यह देखा और वह मैरी के अंदर जो कोई था उसे चौंकाने के लिए फिर से सीढ़ियों से नीचे आने लगी। मैरी बंगले के अंदर चली गई।

ऊपर से अक्षदा को नीचे आया देख सुलेखा सच में चौंक गई। उसे लगा की ये कैसे हुआ। क्या इसपर कोई असर नहीं हुआ? यह कैसे संभव है? क्या इसमें कोई असाधारण शक्ति है? क्या इसने कुछ देख लिया होगा?


अक्षदा ने कहा, “मैडम क्या आप सोई नहीं अभितक?”

सुलेखा ने डरते हुए कहा, “अ – सोने ही वाली थी। बस थोड़ा आग के पास बैठी हुई थी। अब सोने ही जा रही हूं।“

“अच्छा ठीक है। सो जाओ। गुड नाईट।“, अक्षदा ने कहा। और अक्षदा बाथरूम की ओर चलने लगी।

सुलेखा अपने कमरे में चली गई और अपने बेड पर बैठ गई। वह सोच में थी की इसपर कोई असर कैसे नही हुआ।

बस्ती की ओर से विलास के और रोशनी के चिल्लाने की आवाजे आई। अरे उठ जाओ। श्रावण दादाजी को क्या हुआ देखो। उसने देखा की बस्ती के लोग बोहोत ही गहरी नींद में है। घर के दरवाजे भी बंद है। उसकी आवाज से भी कोई नही उठ रहा है। यहातक की उनके कुत्ते भी गहरी नींद में है।


सुलेखा ने यह आवाज सुनी। उसने खिड़की से बाहर देखा और वह फिर से डर गई की आखिर कैसे ये दोनो भी नींद में नही है। वह डर के साथ चौंक भी गई और अपने बेड पर ही बैठी रही। अक्षदा दौड़ते हुए बाहर गई। ऊपर से श्रीकांत और नीलम भी नीचे आ गए। यह देखकर सुलेखा और भी जादा डर गई। उसने अपनी आंखे बंद की और कुछ मंत्र पुटपुटाए। उसी वक्त वह धुंआ गायब होने लगा। और वह भी किसी को शक ना हो इसलिए बाहर देखने आई। अब सुलेखा नही बलकि वह मैरी थी।

विलास ने पुलिस को फोन किया। उधर से श्रीकांत और नीलम भी विलास और रोशनी की तरफ दौड़ने लगे। ये देखने की आखिर क्या हुआ है?

श्रीकांत ने श्रावण को वही पड़े हुए देखा। उन सबके रोंगटे खड़े हो गए।

श्रीकांत ने कहा, “ये सब क्या हुआ?”

विलास ने कहा, “हमने देखा तब ये यहां ऐसे पड़े थे। हम सबको आवाज दे रहे है लेकिन कोई उठ नही रहा हैं।“

उन्होंने फिर से सबको आवाज दी। सब बाहर आ गए। बस्ती के सारे लोग धीरे धीरे उठकर आनंद के घर के आंगन में इकट्ठा हो गए। धूंवा पूरा गायब हो गया था।

थोड़े ही वक्त में पुलिस की कार भी वहा आई। बस्ती के लोग रो रहे थे। गांव के सरपंच और कुछ लोग वहा इकट्ठे हुए। साथ में गांव का सुंदर नाम का पत्रकार भी वहा आया हुआ था।

पुलिस ने और उनकी टीम ने यहां वहा देखा। उन्होंने वहा के लोगों से पूछताछ की। विलास और रोशनी ने जो हुआ था सब बताया। लेकिन रोशनी ने मैरी का नाम नही लिया। क्योंकि उसने देखा था की मैरी ने श्रावण दादाजी के साथ कुछ भी नही किया था। वो तो बाते करके वहा से चलने लगी थी। श्रावण दादाजी तो पैर फिसलकर गिर गए थे।

पुलिस की टीम ने श्रावण की बॉडी को उस टुकड़े के हिस्से से बाहर निकाला। वहा कोई ठोस सबूत नहीं थे की ऐसा लगे यह कोई मर्डर है। एंबुलेंस भी वहा आई। बॉडी को एंबुलेंस में डाल कर ले जाया गया। पुलिस वहा की तहकीकात करके फिर से लौट गई। वहा के लोग अब बोहोत जादा सदमे में थे। पेत्रस और आनंद भी एंबुलेंस के साथ गए। यह रात गुजारना उन लोगों के लिए बोहोत ही मुश्किल था। वे लोग एक साथ बैठे हुए थे। आज का शोक बस श्रावण चाचा के बारे में नही बलकि शांताराम, दगड़ू और इठाबाई के याद में भी था। फादर भी वहा बस्ती पर आ गए। अक्षदा तो मैरी को ही देख रही थी। फिर वो और प्रज्ञा अपने कमरे में चली गई। अक्षदा ने प्रज्ञा को सारी बाते बताई।

अगले दिन पेपर में भी न्यूज आई। टीवी चैनल पर भी इसके बारे में बताया गया। बस्ती पर पिछले दिनों घटी बुरी घटनाओं को बताया जा रहा था। बस्ती के लोगों का अपने एक एक व्यक्ति को गवाने के दुःख को जाहिर किया जा रहा था।

गांव के दुकानों में, होटलों में, स्कूलों में इसी के बारे में चर्चा हो रही थी। घर के बड़े बुजुर्ग एकसाथ स्वर्गवासी हो गए और एक मरते मरते बचे, यह बाते लोगों को सच में काफी हैरान करने वाली थी और चौंकाने वाली भी। और साथ में उन्हें दुःख भरी भी लग रही थी।

कौतिक अपने गांव जाकर आज लगभग दो हफ्ते गुजर चुके थे। इस बात का किसन को भी पता चलते ही उसने तुरंत ही अपने गुरु को फोन करके यह सारी बाते बातायी। कौतिक यह सारी बाते सुनकर डर गया। उसे बोहोत दुःख भी हो रहा था। उसने किसन से कहा की अपनी मां से मिलके वह जल्द ही लौटेगा।

श्रावण का अंतिम विधि हुआ। कब्रस्तान में फिर से एक क्रॉस लग गया।

रात का वक्त था। रोशनी भी दुःख में अपने घर में बैठी हुई थी। विलास उसके पास ही बैठा हुआ था। रोशनी ने सारी बाते विलास को बताई। की उसने कल रात को क्या देखा था। की शायद मैडम किसी के वश में थी। विलास यह बाते सुनकर चौंक गया। उन दोनों ने यह सोच लिया की फादर को अब यह बाते बताएंगे। शायद मैडम को मदद की जरूरत है।

अक्षदा और प्रज्ञा अपने कमरे में बैठे हुए थे। वे दोनो भी दुःख में थे। श्रीकांत और नीलम उनके कमरे में आए।

श्रीकांत ने कहा, “रानी, पनू तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?”

“अच्छी चल रही है।“, प्रज्ञा ने कहा। उसके बाद अक्षदा ने भी वही कहा।

“क्या तुम डर रहे हो? क्या तुम हमसे कुछ शेयर करना चाहती हो? मुझे पता है की पिछले दिनों हम बोहोत बुरे दिनों से गुजरे है।“, श्रीकांत ने कहा।

“नही पापा! हम ठीक है। वैसे भी हम उनके साथ खड़े है यही तो अच्छे परिवार की निशानी होती है। हमे कोई डर भी नहीं लग रहा है। हमे बस बोहोत दुःख हो रहा है।“, अक्षदा ने कहा।

“और हम ये बस्ती छोड़कर भी नही जाना चाहते।“, प्रज्ञा ने कहा।

“मैं तुम्हे कुछ बताना चाहती हूं। मेरे खयाल से हम सब यह सारी बाते रोक सकते है।“, अक्षदा ने कहा।

“यह सब का क्या मतलब है तुम्हारा, रानी?”, नीलम ने कहा।

“यह सब मतलब यह सारी मौते।“, अक्षदा ने कहा।

यह सुनते ही वे सारे चौंक गए।

“तुम्हारा मतलब है की यह मौतें कोई इत्तेफाक नहीं है?”, श्रीकांत ने पूछा।

“हां! यह कोई इत्तेफाक या बस कोई बुरी घटना नही है। इन सबके पीछे शायद मैडम है।“, अक्षदा ने कहा।

यह बात सुनते ही श्रीकांत और नीलम और भी जादा चौंक गए।

“ये क्या कह रही हो तुम रानी?”, श्रीकांत ने कहा

“हां! मैं सही कह रही हूं। लेकिन यह खुद मैडम नही कर रही हैं। कोई शैतानी रूह है जो उनपर हांवी है और यह सब उससे करवा रही है।“, अक्षदा ने कहा। यह सुनते ही वे दोनो फिर से चौंक गए।

“यह तुम क्या कह रही हो? कोई शैतानी रूह?”, श्रीकांत ने कहा।

“हां। मैने पहले ही उसे महसूस किया था जब हम पहली बार यहां आए थे पापा। उसके बाद मैने उसको और जादा ताकदवान बनते हुए महसूस किया है। मैने इन मौतों से जुड़े सपने पहले ही देखे थे। और कल रात मैंने खुद मैडम को यह करते हुए देखा।“, अक्षदा ने कहा।

“यह तो काफी गंभीर बात है। अगर बस्ती वालों को पता चल गया की यह सब मैडम ने किया है तो वे और भी जादा गुस्सा हो जायेंगे और पता नही वे क्या करेंगे।“, श्रीकांत ने कहा।

“लेकिन उन्हें समझना होगा की यह सब उन्होंने नही बलकि उनके अंदर के शैतान ने किया है। मैडम भी खुद इन सबसे संघर्ष कर रही होगी। उसे भी यह दर्दनाक लगता होगा। हम जब पहली बार आए थे तब मैडम कैसे दिख रही थी और आज देखो कैसी दिख रही है। मेरे खयाल से मैडम को भी अभी हमारी जरूरत होगी। हमे फादर से इसके बारे में बात करनी चाहिए।“, अक्षदा ने कहा।

“हां तुमने ठीक कहा रानी। हम कल सुबह फादर से बात करेंगे।“, श्रीकांत ने कहा। “अब तुम दोनों सो जाओ।“

इतना कहते ही श्रीकांत और नीलम अपने कमरे में चले गए फिर अक्षदा और प्रज्ञा भी अपने अपने बेड पर सो गई।


By Kishor Ramchandra Danake





 
 
 

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