top of page

पथ का पंक्षी

By Kamlesh Sanjida


पथ का पंक्षी है तूँ,

अपनी राह बनाता चल

डगर कठिन है फिर भी,

कंकड़ ख़ुद उठाता चल।


हर रोज़ चुनौती का,

तुझको भले ही मिलेगा

अपने ही भीतर तूँ,

तब साहस खूब भरेगा।


डगर में तुझको तो,

लोग बहुत मिलेंगे

भले ही हर रोज़ तुम्हें,

वो तो लोग ठगेंगे।



डर के जाने क्या-क्या,

वो तो रूप धरेंगे

पर तेरी ही हिम्मत से,

तब सब लोग डरेंगे।


अदम साहस भीतर तेरे,

क्या तुझको पता नहीं है

विपरीत परिस्थितियों में,

पर तूँ डरा नहीं है।


खड़ा रहा अडिग तूँ,

तूफानों का कहाँ भय था

उन्नति का शिखर तो,

पहले से ही तय था।


लोगों काभी कहाँ तुझे,

किंचित भी भय था

क्यों कि तेरा लक्ष्य तो,

शूरु से ही तय था।


By Kamlesh Sanjida



15 views1 comment

Recent Posts

See All

Spectre

By Shonil Gramopadhye In those morbid sleepless nights, A voice echoes and cites, The questions and doubts, The wrongs and rights, What...

Pehli Mohabbat

By Prachi Raghuwanshi हां, उनका इत्र आज भी मुझे याद हैहां, उनकी आँखों का वो गेरेुआ रंग मुझे याद हैहां, याद है मुझे उनका हर तरीका,...

Memories Stay

By Joyal Gupta The crumbled-up papers lie Unseen in the attic, A smile is left behind Even by the feel of 'me. All those memories that...

1 Comment

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
Rated 5 out of 5 stars.

Great Motivational Poem

Like
bottom of page