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प्रकृति की नाराजगी

By Virendra Kumar


खफा ना होती प्रकृति इतनी आसानी से,

ज़रूर इस्तेमाल किया है हमनें इसका बड़ी शैतानी से,


प्रकृति के कॉस्ट पर जीडीपी बढ़ा रहे थे,

ज़रा फिर से हिसाब लगा के देखो कि कमा रहे थे या गंवा रहे थे,


ना किया मोल उन चीजों का जो हमेशा से अनमोल था,

चुकानी पड़ेगी कीमत एक दिन अपने किये हर झोल का,


प्रकृति के बस एक झलक से अकल ठिकाने आ गया,

अब बताओ बाबु-भैया जीडीपी का रेस कहाँ गया,


जो बुनियाद है जीवन का उससे ना खिलवाड़ करें,

माँ के आंचल जैसी प्रकृति का ऐसे ना प्रतिकार करें,


अभी छोटा अवकाश है बड़ा अवकाश हो सकता है,

अब होश में आने की बारी है वर्ना सर्व-विनाश हो सकता है l


By Virendra Kumar


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