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प्रतिस्पर्धात्मक बैंकिंग

By Rakhi Bhargava


सभी औद्योगिक कंपनियों के उत्पादों कि शुरूआत उनके इतिहास पर आधारित होती है और यही कारण है कि आज के दौर में मार्केट प्रतिस्पर्धा तेज़ी से बढती जा रही है । मार्केंट विश्लेषण जिसे मार्केट स्टडी भी कहते है आज के माहोल में बहुत ज़रूरी हो गया है। बैंकिंग परिपेक्ष्य में प्रतिस्पर्धा इसलिए भी तेज़ी से बढ रही है क्योंकि पिछ्ले कुछ वर्ष बैंकिंग के फील्ड / क्षेत्र में चुनौतिपूर्ण साबित हुए है क्योंकि उन्हें बिगडती हुई आस्ति गुणवत्ता का सामना करना पडा जिस से बहुत ज़्यादा मात्रा में प्रावधान रखने की आवश्यकता बढ गई तथा गिरती हुई लाभप्रदता तथा कमज़ोर पूंजी की स्थिति सामने आई । हालाकिँ , बैंकिंग प्रणाली परिवर्तन के दौर में है और हाल के नीतिगत उपायों से इन कमजोरियों को कम करने और अपने वित्तीय स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद मिली है। बैंकिंग प्रणाली की आघात सहनीयता बढ़ाने के उद्देश्य से विनियामकीय और पर्यवेक्षी ढांचे को मजबूती प्रदान करने हेतु कई उपाय किए गए और वे अभी भी जारी हैं।

मार्च 2019 तक की स्थिति के अनुसार, अनु सूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का जोखिम भारित आस्ति अनु पात (सीआरएआर) 14.2 प्रतिशत पर था जो कि 9.0 प्रतिशत की विनियामकीय आवश्यकता से कहीं अधिक है। हालांकि, अगर हम पूंजी सं रक्षण बफर (सीसीबी) को ध्यान में रखते हैं, तो कुछ बैंकों, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों(पीएसबी) का यह स्‍तर अपेक्षित 10.875 प्रतिशत से कम रहा है। कुल मिलाकर, पीएसबी में पूंजी डालने के सरकारी प्रयासों से इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में काफी मदद मिली है।

गैर-निष्‍पादित आस्तियां : भारतीय बैंकों, विशेष कर पीएसबी, की आस्ति ‍गणवत्ता में गिरावट को, वर्ष 2006-2011 की अप्रत्याशित क्रेडिट वद्धि (बूम) के परिप्रेक्ष्‍य में देखा जा सकता है, जब बैंक ऋणों में औसतन 20 प्रतिशत की दर से अधिक की वद्धि हुई। आस्ति गुणवत्ता गिरावट के लिए योगदान देने वाले अन्य कारकों में प्रतिकूल मैक्रो-वित्तीय माहौल रहा इसमें क्रेडिट मूल्‍यांकन और स्वीकृति के बाद निगरानी मानकों का ढीला-ढाला रवैया परियोजना में होने वाले विलंब और लागत की अधिकता होना एवं मई 2016 तक एक मजबूत दिवाला व्‍यवस्‍था की अनुपस्थिति शामिल थे। रिजर्व बैंक ने 2014 में बड़े क्रेडिट (सीआरआईएलसी) की सूचना से संबंधित सूचना का एक केंद्रीय भंडार स्थापित किया और इसके बाद 2015 में एक आस्ति गुणवत्ता समीक्षा (एक्‍यूआर) की गई। इन उपायों के परिणामस्वरूप गै र-निष्पादित आस्तियों की पहचान करने में सुधार हुआ, जिससे मार्च 2015 के अंत में सकल एनपीए अनु पात जो 4.3 प्रतिशत था इसमें तीव्र वद्धि हुई और यह मार्च 2016 के अं त में 7.5 प्रतिशत हो गया । मार्च 2018 में यह 11.5 प्रतिशत के उच्‍चतम शिखर पर पहुंच गया । हाल के पर्यवेक्षी आंकड़े बताते हैं कि रिज़र्व बैंक द्वारा अपने विनियामकीय और पर्यवेक्षी ढांचे को मजबूत करने और दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता(आईबीसी) के माध्यम से स्थापित की गई समाधान प्रक्रिया के विभिन्न प्रयास सफल रहे हैं। यह 2018-19 के दौरान अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) की आस्ति गणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार के रूप में परिलक्षित होता है क्योंकि मार्च 2019 की स्थिति‍ के अनुसार, सकल एनपीए अनुपात कम होकर 9.3 प्रतिशत हो गया है।

वहीं मार्च 2019 के अंत में एससीबी के प्रावधान कवरेज अनु पात (PCR) में सुधार हुआ और यह 60.9 प्रतिशत रहा जबकि मार्च 2018 के अंत में यह 48.3 प्रतिशत था और मार्च 2015 के अंत में यह 44.0 प्रतिशत के स्‍तर पर था । बैंकों की पूंजी की स्थिति के कमजोर रहने और उनकी जोखिम लेने से बचने की प्रवत्तिृ के कारण हाल के वर्षों में क्रेडिट वद्धि मंद बनर रही । तथापि, बैंकों के स्वास्थ्य में सधुार के संकेत मिलने के साथ ही क्रेडिट में वद्धि हो रही है।

दबावग्रस्त आस्तियों का समाधान : अब यह अच्छी तरह से जान लिया गया है कि दबावग्रस्त कंपनियों का समय पर समाधान और परिसमापन के लिए एक कुशल दिवालियापन व्‍यवस्‍था मौजूद होनी आवश्यक है। दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (आईबीसी) ने वित्तीय परिदृश्य को काफी बदल दिया है क्योंकि यह एक समयबद्ध बाजार व्‍यवस्‍था वाला दिवाला समाधान प्रदान करता है ताकि अधिकतम मूल्‍य प्राप्‍त किया जा सके। नयी व्‍यवस्‍था एक आमूल चूल परिवर्तन है जिसमें लेनदार पहले की प्रणाली के विपरीत संपत्ति का नियंत्रण ले लेता है जबकि पिछली व्‍यवस्‍था में दे नदार अपने समाधान या परिसमापन होने तक संपत्ति पर काबिज बना रहता था, इससे देश की क्रेडि ट संस्कृति में सधुार होता है। दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए दिनांक 12 फरवरी 2018 के रिज़र्व बैंक के परिपत्र को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नकार दिए जाने के आदेश के मद्दे नज़र हमने कल (7 जू न 2019) नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। नए दिशानिर्देश समाधान या दिवाला कार्यवाही प्रारभ करने में दे री करने के लिए अतिरिक्त प्रावधान के रूप में इसे कठोरतापूर्वक हतोत्‍साहित करता है। नया ढांचा अंतर-लेनदार करार को अनिवार्य बनाता है और बहुमत के फैसले को लागू करने की व्‍यवस्‍था करता है। आगे भी, जहाँ भी आवश्यक हो, रिज़र्व बैंक विशिष्ट चूक के लिए उधारकर्ताओं के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शरू करने के लिए बैंकों को दिशा-निर्देश जारी करेगा, ताकि प्रभावी समाधान प्राप्‍त करने की गति में कोई परिवर्तन न आए। यह उम्मीद की जाती है कि दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए संशोधित विवेकपूर्ण ढांचा, सरकार और रिजर्व बैंक के प्रयासों से क्रेडिट संस्कृति में अब तक आए सुधार को बनाए रखेगा और यह, भारत में मजबूत और समुत्‍थानशील वित्तीय प्रणाली को बढ़ावा दे ने में एक लंबी भूमिका का निर्वाह करेगा ।

गैर-बकिैंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) : ये भारतीय वित्तीय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं इन्होंने बैंकों को प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ उनके पूरक के रूप में उपस्थित होने की व्‍यवस्‍था प्रदान की है। वे शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों मेंविविध प्रकार के ग्राहकों की अनेक वित्तीय जरूरतों को पूरा करती हैं। एससीबी के संयुक्त तुलनपत्र के लगभग 16 प्रतिशत के आकार वाला यह क्षे त्र हाल के वर्षों में तेज गति से बढ़ रहा है। मार्च 2019 के अत तक, एनबीएफसी क्षेत्र का कुल सीआरएआर 19.3 प्रतिशत था जबकि सकल एनपीए अनुपात 6.6 प्रतिशत था । एनबीएफसी की ऋण वद्धि जो पहले 20 प्रतिशत से अधिक थी वह 2018-19 की तीसरी तिमाही में प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण एक एनबीएफसी द्वारा ऋण में चूक करने के बाद धीमी पड़ गई। हालां कि, क्योंकि वित्‍तपोषण के प्रमखु स्रोतों में बहाली होने सेवित्त वर्ष 2018-19 की अतिंम तिमाही में बाजार का भरोसा कुछ हद तक फिर कायम हुआ।

2018 के मध्य में एक बड़ी एनबीएफसी द्वारा दिए गए ऋण में हुई चू क ने इस क्षे त्र विशे ष पर और विशे ष रूप से आस्ति दे यता प्रबंधन (एएलएम) ढांचे पर विनियामकीय सतर्कता को मजबू त करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला । रिजर्व बैंक ने हाल ही में एनबीएफसी के लिए एक मजबू त चलनिधि ढांचे के लिए दिशानिर्देश तैयार किए हैं। इसके अलावा, रिज़र्व बैंक ने अपनी ऋण बहियों का प्रतिभूतिकरण करने के लिए एनबीएफसी मानदंडों में ढील दी है। इसके अलावा, प्रणालीगत रूप से महत्‍वपू र्ण जमाराशि ग्रहण न करने वाली एनबीएफसी और आवास वित्त कंपनियों द्वारा जारी किए जाने वाले बांडों के प्रति बैंकों को आं शिक ऋण वद् ृधि (पीसीई) प्रदान करने की अनु मति दी गई है। बैंकों और गैर-बैंकों के बीच विनियामकीय अंतर को समाप्‍त करने के उद्देश्‍य से रिज़र्व बैंक एससीबी के साथ एनबीएफसी के लिए विनियामकीय और पर्यवेक्षी ढांचे को समान स्‍तर पर ला रहा है। एनबीएफसी की ऑफ-साइट निगरानी को मजबूत करने के लिए एक व्यापक सू चना प्रौद्योगिकी (आईटी) ढांचा तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा, परिचालन अधिक लचीलापन प्रदान करने के लिए एनबीएफसी की कई श्रेणि यों को कम करके उनकी श्रेणि यों को यक्तिु संगत बनाया जा रहा है। रिजर्व बैंक ने एनबीएफसी पर निगरानी बढ़ाने के लिए भी उपाय किए हैं। ये प्रयास मु ख्य रूप से चार पर्यवेक्षी स्तंभों को सधुारने पर केंद्रित हैं - ऑन-साइट जांच करना, ऑफ-साइट निगरानी, बाजार आसू चना और सां विधिक लेखा परीक्षकों की वार्षिक रिपोर्ट  । सांविधिक लेखा परीक्षकों, क्रेडि ट रेटिंग एजेंसियों और एनबीएफसी में बड़ा जोखिम रखने वाले बैंकों सहित सभी हितधारकों के साथ आवधिक सहभागिता हे तु एक सं स्थागत व्यवस्था के रूप में पर्यवेक्षण का पांचवा स्तंभ बनाया गया है।

भावी दिशा: सबसे पहला और महत्वपूर्ण है बैंकों और गैर-बैंकों के अभिशासन में सधुार। इनमें निम्नलिखित शामिल होंगे:



  1. पीएसबी बोर्डों के कार्यकलापों में सुधार लाने और कॉरपोरेट अभिशासन को बढ़ावा देने के लिए, नियक्तिु की प्रक्रिया को अधिक युक्ति संगत बनाना, उत्तराधिकार योजना और मुआवजे के माध्यम से उनकी गणवत्ता और स्थिरता को बढ़ाना महत्वपूर्ण है। इन पहलु ओ का मल्यांकन बैंक बोर्डों द्वारा किया जा सकता है और बैंक बोर्ड ब्‍यूरो द्वारा इसकी समीक्षा की जा सकती है। हमें विशेषज्ञता के विभिन्न क्षेत्रों मेंस्वतं त्र निदेशकों का एक पूल बनाने की भी आवश्यकता है।

  2. सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों के बैंकों के एमडी/ सीईओ के कार्यनिष्पा दन की निगरानी निदेशक मंडल द्वारा अथवा एक उप-समिति के माध्यम से या किसी बाह्य सहकर्मी समूह समीक्षा के माध्यम से की जानी चाहिए।

  3. बैंकों को अपनेवित्तीय और परिचालन मापदंडों में सधुार के लिए एक प्रभावी कार्य निष्‍पादन मू ल्यांकन प्रणाली भी बनानी चाहिए। सरकार, बैंक बोर्ड ब्‍यूरो और रिजर्व बैंक,सरकारी बैंकों के कार्य-निष्‍पादन मू ल्यांकन हे तु एक उद्देश्यपरक रूपरेखा विकसित करने में लगे हुए हैं। इससे पारदर्शिता, जवाबदे ही और कार्यकुशलता पर ध्यान दे ते हुए पीएसबी में कॉरपोरे ट अभिशासन के सं दर्भों को फिर से परिभाषित किया जा सकेगा ।

  4. निजी क्षे त्र के बैंकों (पीवीबी) में अभिशासन के मु द्दे से सं बं धित चिं ताए पं ूरी तरह से अलग प्रकार की हैं। यहां मु द्दे मु ख्य रूप से उनके प्रबंधन का इंसेंटिव ढांचा, लेखापरीक्षा की गणवत् ु ता और उसका अनु पालन तथा लेखापरीक्षा और जोखिम प्रबंधन समितियों के कुशल कामकाज से सं बं धित हैं। रिज़र्व बैंक नेनिजी क्षेत्र के बैंकों में मु आवजे के लिए प्रस्तावित दिशा-निर्देशों पर एक चर्चा-पत्र जारी किया है, जिसमें न्यूनतम परिवर्तनीय वे तन घटक और अन्य व्यवस्थाओ के बीच अंतर करना शामिल है। रिज़र्व बैंक, निजी क्षेत्र के बैंकों को अपने कार्यक्षेत्रों में फलने -फूलने दे ने के लिए सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका निभाता रहेगा ।

दूसरा, बैंकों में मजबू त जोखिम प्रबंधन प्रणाली बनाने के लिए, मु ख्य जोखिम अधिकारियों (सीआरओ) को एक प्रभावी भूमिका निभानी होगी और बोर्ड के प्रबंध निदेशक (एमडी), मु ख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) और जोखिम प्रबंधन समिति को सीधे जवाबदेह होना चाहिए। तीसरा, जोखिम प्रबंधन के साथ-साथ, बैंकों में अनु पालन कार्यप्रणाली उनके कॉरपोरेट अभिशासन संरचना के प्रमु ख तत्वों में से एक है। इन्हें काफी मजबू त और पर्याप्त रूप सेस्वतं त्र बनाना होगा । अनु पालन कार्यप्रणाली प्रभावी होने के लिए, सं गठन के भीतर एक स्वस्थ अनु पालन सं स्कृति होनी चाहिए। बैंकों को अपनेस्वयं के आंतरिक दिशानिर्देशों, बोर्ड के निर्देशों और उनकी समितियों और लेखापरीक्षा आकलन के अलावा सभी सं वैधानिक और विनियामकीय निदेशों के अनु पालन को सनिश्चित करने के लिए उनकी अनु पालन कार्यप्रणाली की व्यापक रूप से समीक्षा करनी चाहिए। यह महत्वपूर्ण हैकि निदेशक मंडल हमेशा किसी भी अनु पालन विफलताओ के प्रति सं वे दनशील रहे। एक समूह-व्यापी अनु पालन कार्यक्र म, प्रबंधन और बोर्डों को सं गठन में कानू नी और प्रतिष्ठा जोखिमों को समझने में मदद करे गा, विशे ष रूप से कुछ क्षेत्रों में उनका संकेन्‍द्रण हो जाने की स्थिति में।

चौथा, यह देखा गया हैकि अधिकांश बैंक धोखाधड़ी के पीछे प्रभावी नियंत्रण का अभाव होता है। आंतरिक नियंत्रण की एक प्रभावी प्रणाली का एक अनिवार्य घटक नियं त्रण तं त्र की मजबू ती होना है। यह निदेशक मंडल और वरिष्ठ प्रबंधन की जिम्मेदारी हैकि वे अपने कार्यों और संवादों के माध्यम से आं तरिक नियं त्रण के महत्व पर जोर दें। बैंकों को अपने कार्मिकों को नियमित रूप से पन: शिक्षित और प्रशिक्षित करना चाहिए ताकि वे अपने संबंधित कार्यक्षेत्रों में आं तरिक नियंत्रण के महत्व को पूरी तरह से समझ सकें। बैंकों के बोर्डों को विशे ष रूप से बैंकों में प्रभावी नियं त्रण की सं स्कृति बनाने और उसे बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए।

पांचवां , भले ही सरकार द्वारा पूंजी डालने से पीएसबी को अपने तु लन-पत्र को बे हतर बनाने में मदद मिली हो, लेकिन मैं इस बात पर जोर दे ना चाहूंगा कि पीएसबी को इस स्रोत पर बहुत अधिक निर्भर नहीं होना चाहिए। व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर पीएसबी को पूंजी के लिए पूंजी बाजार का उपयोग करना चाहिए।

मैंने बैंकिंग और गैर-बैंकिंग क्षेत्रों से सं बं धित कई मु द्दों पर प्रकाश डाला है। एक ठोस और समुत्‍थानशील वित्तीय प्रणाली, आधनिु क अर्थव्यवस्था की एक पूर्वापेक्षा हैजिसमें आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लाभों को समाज के सभी वर्गों को समान रूप प्रदान करना शामिल है। जैसा कि आप जानते हैं, सधुार एक निरतर चलने वाली प्रक्रिया है। रिज़र्व बैंक अपने दृष्टिकोण में सक्रिय बने रहने का प्रयास करे गा । तेजी से बदलते वित्तीय परिदृश्‍य में, हम उभरती हुई चुनौतियों के प्रति सतर्क रहेंगे और उनके लिए उपयक्‍तु जवाबी कार्रवाई करें गें ताकि एक समुत्‍थानशील एवं मजबू त वित्तीय प्रणाली सुनिश्चित हो सकें।

हमेंग्राहक से वा में मौजू दा ख़ामियों को दूर करने और इसे अं तरराष्ट्रीय मानकों के अनु रूप मानकीकृत (बेंचमार्क) करने की भी जरूरत है। ग्राहकों के विश्वास और भगुतान प्रणालियों मेंविश्वास बढ़ाने के लिए एक सदृढ़ ग्राहक शिकायत निवारण प्रणाली विकसित करने के प्रयासों को जारी रखा जाएगा । डिजिटल भगुतान की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए, डेटा सुरक्षा और सायबर सुरक्षा मानदंडों को लगातार मजबू त करने की आवश्यकता है। उभरतेखतरों, जिसमें सं गठित सायबर अपराध और सायबर यद्धु प्रमुख हैं, के परिप्रेक्ष्‍य में सायबर सुरक्षा के बदलते खतरों के खिलाफ निरंतर सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना अनिवार्य हो गया है। जैसा कि बैंक तेजी से प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं, नियामक के लिए यह चनौती होगी कि वह विवेकपूर्ण उपायों के साथ कुशलतापूर्वक संतुलन साध सके ताकि जोखिम को कम रखते हुए अवसरों का लाभ उठाया जा सके।


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