By Pankaj Pahwa
गलवान की घाटी में हूं मैं, भूटान की सरहद पे मैं हूँ,
कश्मीर की वादी में हूं मैं, अरुणाचल परबत पे मैं हूँ,
जो जीते हो तुम चैन-ओ-सुकून, अफगान की घाटी में मैं हूँ,
हूं रहा झेलता हमलों को, पाकिस्तान की छात्ती पे मैं हूँ,
हर week मनाते weekend तुम, मैं छुट्टी कैंसिल करता हूं,
तुम अपने देखते बच्चों को,मैं राइफल देख के चलता हुं,
ना शौक मुझे जागीरों का, ना सोने की जंजीरों का,
तुम लड़ते दो बीघा के लिए, मैं देश की रक्षा करता हुं,
हो माओवादी या आतंकी, मैं सबकी बैंड बजाता हुं,
दे देते मौका एक हूं पर, वरना यमलोक दिखाता हूं,
हैं धन्य सभी वो भाई बहन, हैं धन्य वो माएं और पिता,
बीवी और बच्चे धन्य हैं वो, जिनके सरहद पे खड़े पिता,
गलवान की घाटी में हूं मैं, भूटान की सरहद पे मैं हूँ,
कश्मीर की वादी में हूं मैं, अरुणाचल परबत पे मैं हूँ...
By Pankaj Pahwa
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