By Meghna Dash
क्या ही लिखूँ इस कश्ती में सवार
अपने दिल-ए-हाल,
बस इतना कोई बता सके।
ए बयान कर सकूं दर्द-ए-हाल,
बस इतना कोई बता सके।
सामने आए नज़रों से धुले,
चाहतों के ढेर में, दिल के किसी कोने
ए दस्तक दे भी दे मन्नतों के मंदिर में,
पुकार रही ज़िंदगी आखिरी पन्नों में।
लफ़्ज़ों में कहीं गिना सकूं, पलों के तहखाने में
खुशियों से भीगा सकूं ए खिलखिलाती, मेरी बस एक कमी।
फेरता तकदीर, घुटती सांसें
वक्त की डोर छूटती मेरी।
बहाकर सारे सपनों की तिजोरी,
मोड लेकर एक नई कड़ी।
बंद,
अंधेरों के साए में, थामे हुए उम्मीद की चाबी आवाज़ दे रही,
तेरे कानों में।
सुनाई पड़ी आहट, तेरे मेरे पास आने की
बरसों की ख्वाइश, मिनटों में छपती मेरी।
आखिर, पूरा होना ही था, साथ चंद लम्हों का ही सही
वादा लेकर जा रही, लौट आऊँ किस्मत बनके तेरी।
क्या ही कहूँ,
क्या ही कहूँ खुदा-ए-या दरबार में
आँसुओं से बहे पूरी कहानी मेरी
इशारों से ही कह पाऊँ, लबों पे शिकायत कैसी।
आसान बना दी सफर, उस पार अब मैं चलूं।
कहकर विदा क्या कर सकूं, बस इतना कोई बता सके
सुकून से जुदा क्या कर सकूं, बस इतना कोई बता सके।।
By Meghna Dash
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