By Shreya Paul
लिखती हूँ उनका एक ख्वाब नजरों से
बनता जा रहा है वो उपन्यास बरसों से।
तू तोड़ता कुचलता रहा शब-ओ-रोज़
लगता है कि मेरा दिल बना था पत्तों से।
दिल चाहता है कि तेरा नाम रख दूँ नाज़
क्यूंकि गुज़ारती हूँ शाम तेरे क़सीदों से।
लगता है तेरी सियाही खत्म हो गई है
तेरा लिखा ख़त भरा है मेरे आंसुओं से।
लगता है की वक्त थम गया ‘समानाज़’
गिरा लेकिन बिखरा नहीं आंसु बरसों से।
By Shreya Paul
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